महिला सशक्तिकरण की मिसाल बने समाजसेवी डॉ. संदीप सरावगी

झाँसी। समाजसेवा को अपने जीवन का मूल धर्म मानने वाले समाजसेवी डॉ. संदीप सरावगी वर्षों से महिलाओं और कन्याओं के सम्मान, उत्थान और विवाह में सहयोग के लिए सतत कार्य कर रहे हैं। विगत कई वर्षों में उन्होंने सैकड़ों कन्याओं के विवाह में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से योगदान देकर समाज में एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
 
डॉ. सरावगी न केवल विभिन्न सामूहिक विवाह कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल हुए, बल्कि कई गरीब और जरूरतमंद परिवारों की व्यक्तिगत शादियों में भी सहयोग प्रदान किया। कई परिवार आर्थिक स्थिति के कारण अपनी बेटियों का विवाह धूमधाम से नहीं कर पाते, ऐसे में डॉ. संदीप ने आगे आकर न केवल सहायता दी बल्कि “बेटियाँ बोझ नहीं, सम्मान हैं” का संदेश समाज में मजबूत किया।
 
कन्याओं की तैयारी से विदाई तक- हर जिम्मेदारी निभाई
डॉ. संदीप द्वारा सैकड़ों कन्याओं को ब्यूटी पार्लर से तैयार करवा कर उनके विवाह की खुशी को और अधिक सुंदर बनाया गया। इसके बाद उन्होंने अपने कार्यालय से ही बड़ी आत्मीयता के साथ कन्याओं को ट्रोली बैग, किचन सेट, कंबल, साड़ी और अन्य आवश्यक उपहार देकर पैर पखारकर विदा किया। उनकी यह पहल सिर्फ आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि पिता-सरीखी जिम्मेदारी को निभाने जैसा भावनात्मक उदाहरण मानी जाती है।
 
महिला सशक्तिकरण को समर्पित प्रयास
डॉ. संदीप सरावगी का मानना है कि समाज तभी मजबूत बन सकता है जब उसकी बेटियाँ सुरक्षित, सम्मानित और समर्थ हों। इसी सोच के साथ वे न केवल विवाह में सहयोग करते हैं, बल्कि महिलाओं को सम्मान, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरित करने का निरंतर कार्य करते हैं।
 
स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके द्वारा दिए गए सहयोग ने कई परिवारों में सुख और उम्मीद की रोशनी जगाई है। कई बेटियाँ आज अपने नए जीवन की शुरुआत केवल डॉ. संदीप के सहयोग से कर पाईं।
 
समाज में संवेदना और सेवा की पहचान
डॉ. संदीप सरावगी की समाजसेवा केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि करुणा, संवेदना और मानवीयता से भरी है। कन्याओं के विवाह की तैयारी से लेकर विदाई तक उनकी सहभागिता समाज में उन लोगों के लिए बड़ी प्रेरणा है जो सेवा की भावना से कार्य करना चाहते हैं।
 
बेटियों के संरक्षक के रूप में उभरा नाम
समाज में यह चर्चा आम है कि “जहाँ बेटी की शादी में चिंता हो, वहाँ डॉ. संदीप सरावगी का सहयोग उम्मीद की किरण बनकर पहुँचता है।” समाजसेवी डॉ. संदीप का यह कार्य उनके मानवीय स्वभाव और महिलाओं के प्रति संवेदनशील सोच को दर्शाता है। उन्हें समाज के लोगों द्वारा “बेटियों के संरक्षक” के रूप में भी देखा जाने लगा है।

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