भारतीय सिनेमा की पहली आवाज़ - जुबैदा बेगम

ऐसी अभिनेत्री जिसने भारतीय सिनेमा में इतिहास रच दिया
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने समय के साथ खुद को स्थापित किया, लेकिन जुबैदा बेगम वो नाम हैं जिनके हिस्से भारतीय सिनेमा की एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज है। 1931 में प्रदर्शित भारत की पहली टॉकी फिल्म 'आलम आरा' में बतौर हीरोइन काम कर जुबैदा ने सिनेमा की दुनिया में नई इबारत लिख दी। इससे पहले भारतीय फिल्मों का सफर मूक सिनेमा तक ही सीमित था। लेकिन निर्देशक अर्देशिर ईरानी ने जब 'आलम आरा' बनाई, तब जुबैदा बेगम भारतीय सिनेमा की पहली बोलती अभिनेत्री बन गईं।
रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ने वाली क्रांतिकारी अभिनेत्री
जुबैदा बेगम का जन्म 1911 में ब्रिटिश इंडिया के सूरत में नवाब सिधि मोहम्मद याकुत खान तृतीय और फातमा बेगम के घर हुआ था। एक राजघराने से ताल्लुक रखने के कारण उनके परिवार में पर्दा प्रथा, परंपराएं और सामाजिक पाबंदियां काफी सख्त थीं। लेकिन जुबैदा ने इन बेड़ियों को तोड़कर सिनेमा की दुनिया में कदम रखा और महिलाओं के लिए नए अवसरों का मार्ग प्रशस्त किया।
अदाकारी की दुनिया में प्रारंभिक कदम
मात्र 12 वर्ष की आयु में उन्होंने फिल्म 'कोहिनूर' में अभिनय की शुरुआत की थी। 1924 में 'गुल-ए-बकवली' नामक मूक फिल्म से उन्होंने अपने करियर को आगे बढ़ाया। लेकिन असली पहचान उन्हें 1931 में 'आलम आरा' से मिली, जो भारतीय सिनेमा की पहली बोलती फिल्म बनी। इस फिल्म के जरिए जुबैदा की आवाज पर्दे पर गूंजी और भारतीय दर्शकों ने पहली बार पर्दे पर किसी अभिनेता-अभिनेत्री की आवाज सुनी।
'आलम आरा' से गूंज उठी भारतीय सिनेमा की आवाज
'आलम आरा' को 14 मार्च 1931 को मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में प्रदर्शित किया गया था। इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा को मूक फिल्मों के युग से निकालकर साउंड सिनेमा के दौर में प्रवेश कराया। जुबैदा बेगम की आवाज़ भारतीय सिनेमा के लिए ऐतिहासिक बन गई।
जुबैदा बेगम की प्रमुख फिल्में
अपने करियर में जुबैदा बेगम ने कई मशहूर फिल्मों में काम किया। उनकी चर्चित फिल्मों में शामिल हैं:
मनोरमा
सति सरदरबा
राम सरोवर
काला चोर
देवदासी
इंद्रजाल
लैला मजनू
मीरा बाई
देवदास
निजी जीवन में भी मिसाल कायम की
जुबैदा बेगम ने ना केवल सिनेमा के क्षेत्र में साहसिक निर्णय लिए, बल्कि निजी जीवन में भी परंपराओं को चुनौती दी। उन्होंने धर्म परिवर्तन कर हैदराबाद के महाराज नरसिंगिर धनराजगीर ज्ञान बहादुर से विवाह किया। यह विवाह भी उस दौर में समाज के लिए मिसाल बन गया।
विरासत छोड़कर अलविदा
साल 1987 में जुबैदा बेगम ने 77 वर्ष की उम्र में मुंबई के धनराज पैलेस में अंतिम सांस ली। उनके जाने के बाद भी उनकी ऐतिहासिक उपलब्धि भारतीय सिनेमा में अमर बनी हुई है। आज भी जब भारतीय सिनेमा के विकास की कहानी कही जाती है तो जुबैदा बेगम का नाम गर्व के साथ लिया जाता है।
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