कोयला भी हो उजला, जरि बरि हो जो सेत.... कबीरदास के चुनिंदा दोहे, पढ़े..

कबीरदास या कबीर ,कबीर साहेब 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे.  कबीर अंधविश्वास, व्यक्ति पूजा , पाखंड और ढोंग के विरोधी थे.. उन्होने भारतीय समाज में जाति और धर्मों के बंधनों को गिराने का काम किया.. वे भोजपुरी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महानतम कवि थे.. इनकी रचनाओं ने उत्तर और मध्य भारत के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया...  उनकी रचनाएँ सिक्खों के गुरुग्रंथ,आदि ग्रंथ में सम्मिलित की गयी हैं..  वे एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की..  उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उनका अनुसरण किया... तो आइए आज हम कबीरदास के कुछ चुनिंदा दोहे पढ़ते हैं...

कोयला भी हो उजला, जरि बरि हो जो सेत ।
मूरख होय न अजला, ज्यों कालम का खेत ।।

भावार्थ:- कोयला भी उजला हो जाता है जब अच्छी तरह से जलकर उसमें सफेदी आ जाती है। लेकिन मूर्ख का सुधरना उसी प्रकार नहीं होता जैसे ऊसर खेत में बीज नहीं उगते।
 
ऊँचे कुल की जनमिया, करनी ऊँच न होय ।
कनक कलश मद सों भरा, साधु निन्दा कोय ।।

भावार्थ:- जैसे किसी का आचरण ऊँचे कुल में जन्म लेने से,ऊँचा नहीं हो जाता। उसी तरह सोने का घड़ा यदि मदिरा से भरा है, तो वह महापुरुषों द्वारा निन्दित ही है।
 
सज्जन सो सज्जन मिले, होवे दो दो बात ।
गदहा सो गदहा मिले, खावे दो दो लात ।।

भावार्थ:- सज्जन व्यक्ति किसी सज्जन व्यक्ति से मिलता है तो दो अच्छी बातें होती हैं। लेकिन गधे अगर गधे से मिलते हैं, दो दो लात ही खाते हैं।


कबीर विषधर बहु मिले, मणिधर मिला न कोय।
विषधर को मणिधर मिले, विष तजि अमृत होय ।।

भावार्थ:- सन्त कबीर जी कहते हैं कि विषधर सर्प बहुत मिलते है, मणिधर सर्प नहीं मिलता। यदि विषधर को मणिधर मिल जाये, तो विष मिटकर अमृत हो जाता है। 

 
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध। 
कबीर संगत साधु की, कटै कोटि अपराध ।।

भावार्थ:- एक पल आधा पल या आधे का भी आधा पल ही संतों की संगत करने से मन के करोड़ों दोष मिट जाते हैं।

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