शहीदों की कुर्बानी को याद दिलाती दिनकर की "कलम आज उनकी जय बोल" रचना

आज 75वें गणतंत्र दिवस पर हर तरफ देश भक्ति की बयार बहती हुई नजर आ रही है .हर किसी पर देशभक्ति का रंग चढ़ा हुआ है . हर की आज देश के महानायकों को याद कर रहा है .कोई गीतों के माध्यम से तो कोई कहानियों के माध्यम से लेकिन अहर कई आज हमारे नायकों को याद कर रहा है . आखिर याद भी क्यों ना किया जाए क्योंकि इन्ही महानायकों की कुर्बानियों के बदौलत भारत एक गणतंत्र राष्ट्र बन पाया है . ऐसे में आज हम आपके साथ राष्ट्रिय कवि दिनकर जी की एक ऐसी रचना साझा कर रहें है जो देश के महानायकों की याद दिला रही है .

जला अस्थियां बारी-बारी,
चटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर,
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे,
तूफ़ानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन,
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएं,
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा,
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

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