पंडित कमलापति त्रिपाठी: बनारस से यूपी की सत्ता तक का सफ़र

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ऐसे नेता कम ही आते हैं जिनकी छवि साफ-सुथरी, अपने सिद्धांतों पर अडिग और जिनका काम जनता के लिए सार्थक हो। ऐसे ही एक कद्दावर नेता थे पंडित कमलापति त्रिपाठी, जो यूपी के सातवें मुख्यमंत्री और बाद में केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके हैं।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

3 सितंबर 1905 को बनारस (काशी) में जन्मे कमलापति त्रिपाठी ने काशी विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की। हिंदी और संस्कृत में निपुण, कमलापति ने पत्रकारिता की दुनिया में ‘आज’ अखबार से शुरुआत की। बचपन से ही स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रहे, 16 साल की उम्र में असहयोग आंदोलन के दौरान जेल जाना उनके साहस और प्रतिबद्धता का परिचायक था।

राजनीतिक सफर

1937 से लेकर 1969 तक वे लगातार विधानसभा सदस्य चुने गए। आज़ादी के बाद बनी संविधान सभा के भी सदस्य रहे। यूपी की राजनीति में उनका अपना मजबूत गुट था, हालांकि व्यक्तिगत नहीं, पर राजनीतिक मतभेदों की वजह से उनके संबंध कई अन्य नेताओं जैसे चंद्रभानु गुप्ता और त्रिभुवन नारायण सिंह से ठीक नहीं थे।

मुख्यमंत्री का कार्यकाल

4 अप्रैल 1971 को पंडित कमलापति त्रिपाठी यूपी के मुख्यमंत्री बने। उनका कार्यकाल लगभग दो साल 69 दिन का रहा। 12 जून 1973 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन राजनीति में सक्रियता जारी रखी।

रेल मंत्री के रूप में योगदान

1975 से 1977 और फिर 1980 में केंद्र में रेल मंत्री बने, कमलापति त्रिपाठी ने भारतीय रेलवे को कई नई ट्रेनों और सुधारों से समृद्ध किया। उनकी दूरदर्शिता से रेलवे क्षेत्र में काफी विकास हुआ।

अंतिम समय और विरासत

8 अक्टूबर 1990 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनके सिद्धांत, संघर्ष और मेहनत की कहानी हमेशा याद रखी जाएगी। कमलापति त्रिपाठी ऐसे नेता थे, जो अपने आदर्शों पर अडिग रहे और जीवनभर कांग्रेस के प्रति वफादार रहे। उनकी चार पीढ़ियाँ आज भी कांग्रेस से जुड़ी हैं।

पंडित कमलापति त्रिपाठी सिर्फ एक नेता नहीं थे, बल्कि एक आदर्श, जो राजनीति में अपने आत्मसम्मान और अपने उसूलों के लिए जाने जाते थे।

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