चुप रहकर चालें चलने वाला शतरंजबाज़, संगीतप्रेमी विद्वान और गांधी का मुरीद है खामनेई

डोनाल्ड ट्रंप की धमकी हो या नेतन्याहू की खुली चेतावनी—ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई पर इन दिनों दुनिया की सबसे घातक निगाहें टिकी हैं। ट्रंप तो यहां तक कह चुके हैं कि "हमें पता है खामनेई कहां छिपे हैं, लेकिन हम उन्हें मारेंगे नहीं..." इजरायल की सेनाएं पहले ही खुला आदेश पा चुकी हैं: "खामनेई को खत्म करो।"
लेकिन जिस शख्स ने तीन दशक से ज्यादा वक्त तक दुनिया की सबसे उथल-पुथल वाली धरती के बीच अपनी सत्ता को लोहे की दीवारों की तरह बनाए रखा, वो यूं ही हार मानने वालों में नहीं। खामनेई को ईरान की उस रणनीति का सूत्रधार कहा जाता है जिसने इजरायल को चारों तरफ से घेरने का सपना देखा—प्रॉक्सी युद्धों की जाल बिछाया और दशकों तक अमेरिका-सऊदी गठजोड़ की नींदें उड़ाईं।
एक संत का चोला, एक रणनीतिकार का दिमाग
1939 में मशहद की गलियों से उठे इस साधारण परिवार के बेटे ने शाह के जुल्म सहे, खुमैनी का साया बना, जेलें काटीं, और 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद सत्ता की उस ऊंची कुर्सी तक जा पहुंचे जहां से पूरे ईरान की धड़कनें तय होती हैं।
1989 में अयातुल्ला खुमैनी के निधन के बाद जब खामनेई को सुप्रीम लीडर बनाया गया, तो बहुतों ने सोचा कि यह एक "अस्थायी समझौता" होगा। लेकिन वक़्त ने दिखाया कि वह न केवल स्थायी हुए, बल्कि सत्ता की बागडोर को कसकर इस तरह थामा कि अब ईरान में राष्ट्रपति कौन होगा, ये भी उन्हीं की मर्जी से तय होता है।
गुप्त ठिकानों में छिपा वो रहस्यवादी रणनीतिकार
आज की तारीख में खामनेई सिर्फ धार्मिक नेता नहीं, बल्कि सुरक्षा, विदेश नीति, खुफिया तंत्र और सैन्य योजनाओं के इकलौते नियंता हैं। रिवोल्यूशनरी गार्ड्स हो या कुद्स फोर्स—हर ऑपरेशन की नब्ज उन्हीं के हाथ में है।
उनकी मौजूदगी रहस्यमयी है। वे अक्सर ऐसे ठिकानों में रहते हैं, जिनकी जानकारी यहां तक कि कुछ सीनियर अफसरों को भी नहीं होती। सीधे अपनी विशेष सुरक्षा इकाई से संवाद करते हैं। वे कब, कहां होंगे—ये बताना किसी के बस में नहीं।
राजनीति की शतरंजी बिसात के मास्टर
खामनेई के करीबी कहते हैं कि वे बहुत कम बोलते हैं, लेकिन जब बोलते हैं तो शब्दों से ज्यादा चालें चल देते हैं। राजनीति में उनकी सबसे बड़ी ताकत है—परिस्थिति को तेज़ी से समझना और फैसला खुद करना। सलाहकारों की लंबी फेहरिस्त जरूर है, लेकिन निर्णय वही लेते हैं। और एक बार ले लिया, तो पीछे नहीं हटते।
ईरान के पूर्व राष्ट्रपति रफ़संजानी ने उन्हें “अवसरवादी और सत्ता को सर्वोच्च रखने वाला” बताया था। जबकि मोहम्मद खातमी कहते हैं कि "धार्मिक रूप से भले कमजोर हों, पर राजनीतिक दिमाग बेहद तेज़ है।"
किताबों का दीवाना, संगीत का रसिक
शायद आपको हैरानी हो—but the man who controls Iran’s missiles loves santoor melodies.
खामनेई पुराने फारसी संगीत को निजी तौर पर बेहद पसंद करते हैं, खासकर संतूर की धुनें। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को “आत्मा को छू लेने वाला” बताया था।
और यही नहीं—दोस्तोवस्की, टॉलस्टॉय, रूमी और ईरानी कवियों के विशाल संग्रह के बीच उनका मन रमता है। ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ में उन्हें नैतिक द्वंद्व की गहराई नजर आती है, जबकि ‘वॉर एंड पीस’ में उन्हें एक ऐसा ऐतिहासिक दृष्टिकोण दिखता है जो ईरान के युद्ध अनुभवों से जुड़ता है।
गांधी: एक विरोधी संस्कृति में प्रेरणा
आश्चर्य नहीं कि एक समय अयातुल्ला खामेनेई ने गांधी को “राजनीतिक नैतिकता का प्रतीक” कहा था।
उनका मानना था कि गांधी ने दिखाया कि बिना हथियार उठाए भी सत्ता को झुकाया जा सकता है। खामेनेई ने कहा था, “हमारी परिस्थितियां अलग हैं, लेकिन गांधी के नैतिक नेतृत्व से हम भी प्रेरणा ले सकते हैं।”
कुश्ती, संयम और सत्ता का खेल
खामनेई को बचपन में कुश्ती बेहद पसंद थी और आज भी वह उसे "ईरानी मर्दानगी का प्रतीक" मानते हैं। उनका निजी जीवन बेहद संयमित है: सादा खाना, हाथ से लिखना, पुरानी स्टाइल का चश्मा और घंटों अध्ययन। तनाव के बीच भी वे शांत रहते हैं—अक्सर किताबों के बीच शरण लेते हैं।
तो कौन हैं खामनेई?
एक ऐसे शख्स जो बाहर से संत दिखते हैं, भीतर से रणनीतिकार हैं। जिनका दिल संगीत और साहित्य में रमता है, लेकिन हाथ में सत्ता की लाठी भी है। जो गांधी को भी पढ़ते हैं और हमास को भी खड़ा करते हैं। जिनकी दुनिया छाया है—धुंध में, पर नियंत्रण में।
विरोधी उन्हें "तानाशाह" कहें या समर्थक "आध्यात्मिक नेता"—अयातुल्ला अली खामेनेई को अनदेखा करना आज भी किसी भी वैश्विक ताकत के लिए मुमकिन नहीं।
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