विजयराघवगढ़ माँ शारदा मंदिर इतिहास और आस्था का संगम

कटनी : विजयराघवगढ़ नगर का प्राचीन माँ शारदा मंदिर नवरात्र पर्व पर आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है। मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्षों पुराना है और यह नगर की पहचान के रूप में जाना जाता है। माँ शारदा मंदिर का निर्माण विजयराघवगढ़ के राजा प्रयागदास ने सन् 1826 में कराया था। बताया जाता है कि उसी समय किला, कुएँ, बावली, पंचमठा, तालाब और बगीचों का भी निर्माण कराया गया था। मंदिर को मैहर की माँ शारदा का बड़ी बहन माना जाता है। इसलिए दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था यहाँ विशेष रूप से जुड़ी रहती है। 1857 की स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विजयराघवगढ़ किला अंग्रेजों से संघर्ष में ध्वस्त हुआ, उस समय मंदिर को भी क्षति पहुँची। वर्षों तक यह खंडहर अवस्था में रहा। बाद में 1984 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया, जहाँ मैहर के पंडा देवी प्रसाद ने पुनः अभिषेक और पूजा-अर्चना कर मंदिर को पुनर्जीवित किया। माँ शारदा मंदिर केवल विजयराघवगढ़ ही नहीं, बल्कि कटनी जिले और आसपास के क्षेत्रों की धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहाँ चैत्र और शारदीय नवरात्र पर विशेष आयोजन होते हैं। भक्त माँ को चुनरी, नारियल और दीप अर्पित कर परिवार की सुख-समृद्धि और मंगल की कामना करते हैं। नवरात्र के दिनों में प्रतिदिन सुबह-शाम आरती, भजन संध्या और कन्या पूजन का आयोजन होता है। विजयदशमी तक मंदिर परिसर मेले जैसा रूप ले लेता है।इस वर्ष भी मंदिर समिति द्वारा विशेष सजावट, विद्युत लाइटिंग और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी की गई है। मंदिर प्रबंधन ने सुरक्षा और स्वच्छता की विशेष व्यवस्था की है। नवरात्र के पहले दिन से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए उमड़ रहे हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया की विजयराघवगढ़ का माँ शारदा मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है। भक्तों की आस्था यहाँ निरंतर बढ़ रही है और नवरात्र में तो पूरा नगर देवी के जयकारों से गूंज उठता है।माँ शारदा मंदिर का इतिहास और नवरात्र आयोजन विजयराघवगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर और सामूहिक आस्था का जीवंत प्रतीक है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु न केवल दर्शन करते हैं, बल्कि नगर के गौरवशाली अतीत और परंपराओं से भी जुड़ते हैं।
रिपोर्टर : सुमित जायसवाल
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