ईदुलअजहा पर दमन में इर्ष्या ,द्वेष और बुराइयों की कुर्बानी

सिराथू - ईदुलअजहा( बकराईद ) के शुभ औसर पर, अपनी सबसे ज़ियादा पसंदीदा चीज़ को,अल्लाह की राह में कुर्बानी देने का होता है।  ऐसे में हमें इस कुर्बानी के इस त्योहार में मन के भीतर छिपी एक दूसरे के प्रति इर्ष्या द्वेष की  कुर्बानी देकर मानवता हासिल करना है। जिससे मुल्क में अमन शांति कायम रहे। इस त्योहार में गरीब कमजोर लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना चाहिए।  हजरत इब्राहिम अलैह सलाम को अल्लाह ने ख्वाब में अपनी पसंदीदा चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया। जिस पर हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का फैसला किया और बेटे व खुद की आंख में पट्टी बांध कर हाथ में छूरी लेकर बेटे की गर्दन पर चला दी, परंतु बेटे की जगा अल्लाह ने हज़रते जिब्रिल को हुक्म दिया की फैरन जन्नत से ऐक दुम्बा लेकर जाएं और हज़रते इब्राहिम के प्रिय पुत्र हजरते इस्माईल की जगा जन्नती दुम्बा रक्खा जाए ताकि बेटे की जगा दुम्बा ज़बा हो , इस तरह अल्लाह ने हज़रते इस्माईल की जान को बचाया और दुम्बा ज़बा होगया, नोट  अल्लाह पाक किसी की जान की क़ुरबानी या बलिदान नहीं मांगता, अल्लाह, अपने हर बन्दे से उसके ईमान और हैसियत के मुताबिक़ इम्तिहान लेता है! की मेरा बंदा जिसको मैंने ला क़िमत ज़िन्दगी एवं ज़िन्दगी की तमाम नेमत अता की है, वो बंदा मेरे लिये क्या करता है! अगर बंदा अपने रबकी रज़ा पर राज़ी रहा तो उसकी दुन्या व आख़िरत की हर मुश्किल आसान होती हैं, और असल में वही इंसान कामयाब इंसान होता है! बस तभी से दुंबा भेड की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुवा, तब से इस त्यौहार पर कुर्बानी की परंपरा चली आ रही है, जिस पर लोग भेड़ व  बकरे की कुर्बानी देते है। याद रहे अल्लाह पाक खाली इस अमल से हि खुश नहीं होता हैं। बल्कि इसके लिए हमे एक दूसरे के प्रति इर्ष्या, द्वेष, नफरत को एवं हर प्रकार के भेदभाओ को कुर्बान कर,अल्लाह की इबादत करनी चाहिए जिससे समाज में भाईचारा बनाने के साथ मुल्क में अमन शांति रहे। मानवता के प्रति नफरत की भावना को खत्म कर गरीब, कमजोर असहायों की मदद करनी चाहिए, इस दिन अपने दौलत खाने से कुछ हिस्सा गरीबों के नाम पर तक्सीम करना जरुरी है। ऐसा करने से अल्लाह पाक अपने बंदों पर अपनी रहमतें नाज़िल फरमाता है!और उसे दुन्या व आख़िरत की तमाम भलाइयाँ नसीब फरमाता है। 1 कुर्बानी का मतलब बकरे को हलाल करना नही होता है। इस दिन हमें अल्लाह की राह पर अपनी अजीज चीज की कुर्बानी देनी चाहिए। जिसमें हमें नफरत को भूल कर एक दूसरे के प्रति सहयोग व प्रेम की भावना रखना चाहिए । बकरीद के दिन मन के भीतर छुपी एक दूसरे के प्रति इर्ष्या, द्वेष और बुराइयों को कुर्बान कर देना चाहिए। और एक दूसरे के साथ भाईचारा स्थापित पर मुल्क में अमन शांति की दुआ करनी चाहिए।
हाफ़िज़ अब्दुल गनी गाज़ी नारा 2 कुर्बानी का यह त्यौहार एक दूसरे के लिए मदद करने का होता है। ऐसे में हमें अपने दौलत खाने से कुछ हिस्सा गरीबों में तक्सीम करना चाहिए जिससे उनके घरों में भी त्यौहार की खुशियां आ सकें। इस दिन एक साथ इबादत करने के बाद  लोग गिले शिकवे भुलाकर गले मिलते है। और एक दूसरे के घरों में जाकर सेवई की मिठास के साथ संबंधों की मिठास  कायम करते है। यह त्यौहार आपसी भाईचारा व सौहार्द का प्रतीक है।

रिपोर्टर - वसीम गाज़ी 

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