किडनी रोग बन रहे साइलेंट महामारी, समय पर जांच और जागरूकता से बचाव संभव-
किडनी रोग बन रहे साइलेंट महामारी, समय पर जांच और जागरूकता से बचाव संभव-
साइलेंट बीमारी बनती सीकेडी-
संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ में आयोजित इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी (आईएसएन) के 54वें वार्षिक सम्मेलन *आईएसएनकॉन 2025* में विशेषज्ञों ने किडनी रोगों को तेजी से बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बताया। राष्ट्रपति व्याख्यान में कहा गया कि क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक साइलेंट बीमारी है, जिसके शुरुआती दौर में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते। यही कारण है कि अधिकांश मरीज समय रहते बीमारी को पहचान नहीं पाते।
देर से होता है रोग का पता-
सम्मेलन के आयोजक और नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि करीब 60 प्रतिशत मामलों में किडनी की 60 से 80 प्रतिशत कार्यक्षमता खत्म हो जाने के बाद ही रोग का पता चलता है। चिंताजनक तथ्य यह भी है कि देश में लगभग 19 प्रतिशत किडनी रोगों का कोई स्पष्ट कारण सामने नहीं आ पाता, जिससे समय पर रोकथाम और इलाज मुश्किल हो जाता है।
सस्ती जांच से बच सकती है किडनी-
विशेषज्ञों ने सलाह दी कि हर छह महीने में पेशाब में प्रोटीन की जांच करानी चाहिए, जिससे किडनी की खराबी को शुरुआती स्तर पर पहचाना जा सके। यह जांच मात्र 20 से 50 रुपए में उपलब्ध है। साथ ही रक्तचाप और मधुमेह को नियंत्रित रखना किडनी को स्वस्थ रखने के लिए बेहद जरूरी बताया गया।
स्क्रीनिंग और जागरूकता पर जोर
सम्मेलन में जनसंख्या स्तर पर नियमित स्क्रीनिंग की आवश्यकता पर बल दिया गया, खासकर मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों के लिए। विशेषज्ञों ने अप्रैल के दूसरे रविवार को ‘राष्ट्रीय किडनी रोग रोकथाम दिवस’ मनाने का प्रस्ताव रखा, ताकि आम लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा सके। मेडिकल शिक्षा में प्रिवेंटिव नेफ्रोलॉजी को शामिल करने की भी सिफारिश की गई।
प्रत्यारोपण, स्वदेशी तकनीक और मातृ स्वास्थ्य-
भारत किडनी प्रत्यारोपण में विश्व में तीसरे स्थान पर है, लेकिन ब्रेन डेड दाताओं से प्रत्यारोपण की दर अभी कम है। विशेषज्ञों ने अंगदान जागरूकता बढ़ाने की जरूरत बताई। साथ ही नेफ्रोलॉजी में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने और गर्भावस्था व प्रसव के दौरान होने वाली किडनी इंजरी की समय पर पहचान व इलाज पर विशेष जोर दिया गया।

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