ये 10 देसी पत्तियां बनेंगी आपकी फसल की ढाल, कीट और रोग दोनों होंगे दूर!

जैविक खेती को बढ़ावा देने और रसायनों के अधिक उपयोग से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए अब किसान पारंपरिक देसी ज्ञान की ओर लौट रहे हैं। खेतों में कीटों और बीमारियों से निपटने के लिए अब महंगे और जहरीले कीटनाशकों की जगह आसपास आसानी से मिलने वाली 10 प्रकार की पत्तियों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, ये पत्तियां न केवल प्राकृतिक कीटनाशक का काम करती हैं, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता को भी बनाए रखती हैं। इससे उत्पादन पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।
जानिए कौन-सी हैं ये 10 फायदेमंद पत्तियां:
नीम की पत्ती – कीटों और फफूंद से लड़ने में सबसे प्रभावशाली।
तुलसी की पत्ती – बैक्टीरिया और वायरस से सुरक्षा।
धतूरा – कीट नियंत्रण में बेहद कारगर, लेकिन सावधानीपूर्वक उपयोग ज़रूरी।
अरंडी की पत्ती – छाछ के साथ मिलाकर छिड़काव करने से कीड़े भागते हैं।
करंज की पत्ती – जैविक कीटनाशक के रूप में उपयोगी।
लहसुन की पत्ती – कीट प्रतिरोधक और फफूंदनाशक।
भांग की पत्ती – खासकर फलदार पौधों पर कीट नियंत्रण में सहायक।
सहजन (मोरिंगा) – रोग प्रतिरोधक गुणों से भरपूर।
अकौआ – पत्तों का काढ़ा बनाकर छिड़काव करने से कीड़े दूर रहते हैं।
गुड़हल की पत्ती – पत्तियों का रस फसलों को कीटों से सुरक्षित रखने में मदद करता है।
कैसे करें उपयोग?
इन पत्तियों को पानी के साथ पीसकर या उबालकर उनका घोल तैयार किया जाता है। फिर इस घोल को छानकर फसलों पर छिड़का जाता है। यह न केवल कीटों को भगाने में मदद करता है, बल्कि पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।
किसानों को क्या मिलेगा फायदा?
कीटनाशक खर्च में भारी कटौती
मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है
स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित उपज
फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार
विशेषज्ञों की सलाह:
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि “इन पत्तियों से तैयार प्राकृतिक कीटनाशक न सिर्फ कीटों को भगाने में मदद करते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखते हैं। किसानों को चाहिए कि वे रसायनों की जगह इन देसी तरीकों को अपनाएं।”
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