उन्नत खेती से कोदों-कुटकी की पैदावार दोगुनी करें

कोदों (Kodo millet) और कुटकी (Kutki millet) भारत के पारंपरिक बाजरा परिवार के अन्न हैं, जो पोषण और स्वास्थ्य के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन अनाजों का उत्पादन बढ़ाना न केवल किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है, बल्कि सतत और पर्यावरण अनुकूल कृषि के लिए भी आवश्यक है। इस लेख में हम कोदों और कुटकी की उन्नत उत्पादन तकनीकों पर चर्चा करेंगे।

1. कोदों और कुटकी का परिचय

कोदों (Paspalum scrobiculatum) एक प्रकार का बाजरा है, जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है।

कुटकी (Panicum miliaceum), जिसे फॉक्सटेल मिलेट भी कहा जाता है, ठंडे और पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाला एक महत्वपूर्ण दाना है।

दोनों अनाजों में उच्च पोषण तत्व होते हैं, जैसे फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिज।

2. उन्नत उत्पादन के लिए ज़रूरी कृषि तकनीकें

2.1 बीज चयन और उपचार

उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों का उपयोग करें, जो रोग प्रतिरोधी और उच्च उपज वाले हों।

बीज उपचार के लिए जैविक या रासायनिक प्रिजर्वेटिव का उपयोग करना चाहिए ताकि रोगों से बचाव हो।

2.2 भूमि की तैयारी

मिट्टी की गहरी जुताई करें ताकि जमीन ढीली और पोषक तत्वों से भरपूर हो।

मिट्टी परीक्षण कराकर उसकी उर्वरता का पता लगाएं और आवश्यकतानुसार जैविक या रासायनिक खाद का उपयोग करें।

समुचित जल निकासी व्यवस्था सुनिश्चित करें।

2.3 सही बुआई समय और तरीका

कोदों और कुटकी के लिए उपयुक्त बुआई का समय क्षेत्रीय जलवायु के अनुसार निर्धारित करें।

पंक्ति दूरी का ध्यान रखें (कोदों के लिए 30-40 सेमी और कुटकी के लिए 20-25 सेमी), जिससे पौधों को पर्याप्त जगह मिले।

बीजों को उचित गहराई (2-3 सेमी) पर बोना चाहिए।

2.4 सिंचाई प्रबंधन

दोनों फसलों को बुवाई के बाद पहली सिंचाई 10-15 दिन के भीतर करनी चाहिए।

सूखे सहिष्णु होने के कारण कम सिंचाई में भी उत्पादन हो सकता है, लेकिन सही मात्रा में जल देना उपज को बढ़ाता है।

फूल आने के समय और दाने बनने के समय सिंचाई जरूरी होती है।

2.5 खाद और उर्वरक

नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम का संतुलित उपयोग करें।

जैविक खाद (गोबर खाद या कम्पोस्ट) के साथ रासायनिक उर्वरक का मिश्रण बेहतर रहता है।

खेत की मिट्टी के अनुसार उर्वरक की मात्रा तय करें।

2.6 कीट और रोग नियंत्रण

फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों जैसे हरी मक्खी, लताछी, और फफूंद रोगों के नियंत्रण के लिए जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का उचित उपयोग करें।

समय-समय पर फसल निरीक्षण करें और संक्रमण के शुरुआती लक्षण दिखते ही उपचार शुरू करें।

2.7 फसल चक्र और मिश्रित खेती

फसल चक्र अपनाकर मिट्टी की उर्वरता बनाये रखें।

कोदों और कुटकी के साथ दलहन या तिलहन की फसलें मिलाकर खेती करें जिससे लाभ बढ़ता है।

3. फसल कटाई और भंडारण

फसल के दाने पूरी तरह पक जाने के बाद ही कटाई करें।

कटाई के बाद दानों को अच्छी तरह सुखाएं ताकि नमी कम हो और भंडारण के दौरान खराब न हों।

उचित भंडारण तकनीक अपनाएं ताकि दाने में कीट या फफूंद न लगे।

4. तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण

किसानों को उन्नत कृषि तकनीक और प्रबंधन के बारे में प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

कृषि विश्वविद्यालयों और सरकारी योजनाओं से सहायता लेकर किसानों को नवीनतम तकनीकों से अवगत कराना चाहिए।

कोदों और कुटकी की उन्नत उत्पादन तकनीकों को अपनाकर न केवल इन फसलों की उपज बढ़ाई जा सकती है, बल्कि किसानों की आय में भी सुधार लाया जा सकता है। पर्यावरण की दृष्टि से भी ये फसलें टिकाऊ हैं क्योंकि ये कम पानी और कम उर्वरक में अच्छी पैदावार देती हैं। आधुनिक कृषि तकनीकों के साथ सही प्रबंधन से भारत की इन पारंपरिक फसलों का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बेहतर बन सकते हैं।

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