पराली: खेत की भलाई या बर्बादी?

हर साल अक्टूबर-नवंबर आते ही उत्तर भारत के खेतों में धुंआ उठता है। कटाई के बाद बची हुई फसल यानी पराली को जलाने की परंपरा आज भी जारी है। मगर कई किसान इसे ज़रूरी मानते हैं — सस्ती, तेज़ और आसान सफाई का तरीका। पराली जलाने से खेत की मिट्टी में मौजूद प्राकृतिक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। पराली में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो मिट्टी की उर्वरता बनाए रखते हैं। जब पराली जलती है, तो ये सारे तत्व जलकर खत्म हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, किसान को मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने के लिए महंगे रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना पड़ता है।
मिट्टी की संरचना और जल-धारण क्षमता घटती है
पराली जलने के कारण मिट्टी की बनावट खराब हो जाती है। इसकी सतह कठोर हो जाती है, जिससे पानी की सोखने की क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से बारिश का पानी जमीन में समुचित मात्रा में नहीं जा पाता और बहकर चला जाता है। इससे जल संरक्षण की समस्या बढ़ती है और खेत सूखा बनने लगता है।
मिट्टी में जीवाणु और लाभकारी जीव नष्ट हो जाते हैं
पराली जलने से मिट्टी में रहने वाले लाभकारी जीवाणु, कीड़े और केंचुए मर जाते हैं। ये जीव मिट्टी को स्वस्थ बनाए रखने और पौधों के लिए पोषक तत्व उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब ये जीव खत्म हो जाते हैं, तो मिट्टी की जैविक गुणवत्ता खराब हो जाती है और फसलों की पैदावार प्रभावित होती है।
पराली जलाने से पर्यावरण और किसान की सेहत को नुकसान
पराली जलने से निकलने वाला धुआं और हानिकारक गैसें न केवल वातावरण को प्रदूषित करती हैं, बल्कि किसान और आस-पास के लोगों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव डालती हैं। इससे सांस संबंधी बीमारियां बढ़ती हैं और जीवन की गुणवत्ता घटती है। इसलिए पराली जलाना न केवल खेत के लिए, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदेह है।
पराली जलाना आर्थिक दृष्टि से भी नुकसानदायक
पराली जलाने से खेत की उर्वरता कम होने पर किसान को अधिक रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर खर्च बढ़ाना पड़ता है। इससे खेती की लागत बढ़ती है और आर्थिक नुकसान होता है। इसके अलावा, प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य संबंधी खर्च भी बढ़ते हैं, जो किसान के लिए आर्थिक बोझ बन जाता है।
पराली जलाने का विकल्प भी मौजूद है
आज के दौर में पराली जलाने की जगह पर्यावरण और खेती दोनों के लिए बेहतर विकल्प उपलब्ध हैं। जैसे पराली को खाद में परिवर्तित करना, हैप्पी सीडर मशीन से खेत में ही पराली को दबाना, या बायो-डिकम्पोज़र का इस्तेमाल करना। ये तरीके मिट्टी की सेहत बनाए रखते हैं और प्रदूषण भी कम करते हैं।
पराली जलाने की आदत से किसान और हमारी धरती दोनों को भारी नुकसान हो रहा है। मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरण और स्वास्थ्य सब प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि हम पराली जलाने से हटकर इसके सुरक्षित और लाभकारी उपयोग को अपनाएं। खेत की मिट्टी और हमारे भविष्य की रक्षा हमारी जिम्मेदारी है।
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