मैं नवागत वह अजित अभिमन्यु हूँ..चक्रव्यूह: कुँवर नारायण

BY CHANCHAL RASTOGI
समकालीन कविता के समादृत कवि कुँवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 को उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद जनपद के अयोध्या में एक संपन्न परिवार में हुआ. जहाँ वर्ष 1951 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और इसी दौरान लखनऊ लेखक संघ की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी की. रघुवीर सहाय उनके सहपाठी थे. रघुवीर सहाय ने उन्हें अज्ञेय की कविता ‘हरी घास पर क्षण भर’ से परिचित कराया. अज्ञेय की कविताएँ पढ़कर वह हिंदी में कवि कर्म की ओर अग्रसर हुए.
कविता के साथ ही उनकी रूचि इतिहास, पुरातत्व, सिनेमा, कला, क्लासिकल साहित्य, आधुनिक चिंतन, समकालीन विश्व साहित्य, संस्कृति विमर्श आदि में भी रही. बता दे की कुँवर नारायण को वर्ष 2005 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वही, वर्ष 1995 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार और वर्ष 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया और वर्ष 2009 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था.
इसके साथ ही उनकी कुछ प्रमुख कवितायें हैं: चक्रव्यूह, तीसरा सप्तक, परिवेश : हम-तुम, अपने सामने , कोई दूसरा नहीं, इन दिनों, हाशिए के बहाने, कविता के बहाने आदि..तो आइये
आज पढ़ते है उनकी बेहद मशहूर कविता चक्रव्यूह...
युद्ध की प्रतिध्वनि जगाकर
जो हज़ारों बार दुहराई गई,
रक्त की विरुदावली कुछ और रँगकर
लोरियों के संग जो गाई गई
उसी इतिहास की स्मृति,
उसी संसार में लौटे हुए,
ओ योद्धा, तुम कौन हो?
मैं नवागत वह अजित अभिमन्यु हूँ
प्रारब्ध जिसका गर्भ ही से हो चुका निश्चित,
अपरिचित ज़िंदगी के व्यूह में फेंका हुआ उन्माद,
बाँधी पंक्तियों को तोड़
क्रमशः लक्ष्य तक बढ़ता हुआ जयनाद
मेरे हाथ में टूटा हुआ पहिया,
पिघलती आग-सी संध्या,
बदन पर एक फूटा कवच,
सारी देह क्षत-विक्षत,
धरती-ख़ून में ज्यों सनी लथपथ लाश,
सिर पर गिद्ध-सा मँडरा रहा आकाश...
मैं बलिदान इस संघर्ष में
कटु व्यंग्य हूँ उस तर्क पर
जो ज़िंदगी के नाम पर हारा गया,
आहूत हर युद्धाग्नि में
वह जीव हूँ निष्पाप
जिसको पूज कर मारा गया,
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