आचार्यश्री का संघ सहित बडे़ मन्दिर महरोनी में दस दिवसीय प्रवास रहा

ललितपुर - वैज्ञानिक संत आचार्यश्री का संघ सहित बडे़ मन्दिर महरोनी में दस दिवसीय प्रवास रहा प्रतिदिन प्रातः आचार्यश्री के मंगल प्रवचन एवं शाम को शंका समाधान का कार्यक्रम चला।27 जून की धर्म सभा में आचार्यश्री ने उपदेश देते हुए कहा-
समाज अनेक प्रकार की होती है जैसे स्वार्थी समाज,परमार्थी समाज,स्वस्थ समाज,धार्मिक समाज,भक्त समाज , व्यसनी समाज , हिंसक समाज,अहिंसक समाज,उपकारी समाज। हमें उपकारी,अहिंसक,स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। यही जैन धर्म का मूल उद्देश्य है । जैन समाज स्वयं परमार्थी, उपकारी, धार्मिक और अहिंसक समाज है । परस्पर उपकार करने वाली समाज स्वस्थ समाज कहलाती है । परस्परताके सूत्र में बंध जाने पर परोपकार की भावना पैदा होती है और संघर्ष समाप्त हो जाता है ।  जो समाज भगवान की भक्ति करती है , परिवार और समाज के की सेवा में लीन रहती है वह भक्त समाज कहलाती है । भक्ति रूपी चाबी से मुक्ति महल में लगा ताला खुल है । विनय करने से मोक्ष महल में लगा हुआ दरवाजा खुलता है। इसलिए विनय को मोक्ष का द्वार कहा है । भक्त और भगवान के बीच संबंध जोड़ने में भक्ति सेतु का काम करती है। भक्ति आत्म उत्थान का सूत्र है। परोपकार समाज उत्थान का सूत्र है। सेवा परिवार के उत्थान का सूत्र है। आचार्य श्री ने कहा जिस व्यक्ति के अंदर भक्ति की हवा भरी होती है वह वालीवाल के समान होता है उसे लोग गिरने नहीं देते बल्कि हाथों हाथों में लिए रहते हैं । लेकिन जिसके अंदर अहंकार की हवा भरी होती है वह फुटबॉल के समान होता है उसे कोई हाथ नहीं लगाता है फुटवाल के समान अहंकारी व्यक्ति का स्थान पैरों  के नीचे होता है ।वह संसार की ठोकर खाता रहता है । अपने जीवन को फुटवाल नहीं बालीवाल बनाना  चाहिए। तभी समाज में इज्जत होगी और स्वर्ग की ओर आत्मा की गति होगी । संसारी प्रत्येक मानव को जन्म जरा मृत्यु रोग अनादि काल से लगे हुए है । प्रत्येक संसारी प्राणी आहार,भय,मैथुन और अपरिग्रह संज्ञा से पीड़ित है । इस पीड़ा को धर्म रूप औषधि से दूर किया जा सकता है ।आचार्य श्री ने बुंदेलखंड में चलने वाली कहावत के अनुसार कहा झांसी गले की फांसी दतिया गले का हार ललितपुर तब तक ना छोड़िए जब तक ना हो उद्धार। पूजा,भक्ति एवं आरती की परंपरा अनादि कालीन है प्रातः काल देवकी पूजा करना चाहिए दोपहर में गुरु को आहार दान रूपी भक्तिकरना चाहिए और शाम को संध्याकाल में धर्मशास्त्र की आरती करना चाहिए यही त्रिकाल वंदना है भक्ति है और पूजा है इसको करने वाला तीन लोक का नाथ बन जाता है। प्रवचन के उपरांत आचार्य संघ की आहार चर्या हुई। तदुपरांत सामायिक करने के पश्चात आचार्य संघ का ललितपुर की ओर चातुर्मास हेतु मंगल विहार हुआ।

रिपोर्टर - ऋषि तिवारी 

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