महा” शब्द का अर्थ है “महान” और “शिवरात्रि” का अर्थ है “भगवान शिव की रात” महाशिवरात्रि

लातेहार : सत्य ही शिव हैं और शिव ही सुंदर है। तभी तो भगवान आशुतोष को सत्यम शिवम सुंदर कहा जाता है। भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने का ही महापर्व है...शिवरात्रि...जिसे त्रयोदशी तिथि, फाल्गुण मास, कृष्ण पक्ष की तिथि को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर्व की विशेषता है कि सनातन धर्म के सभी प्रेमी इस त्योहार को मनाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भक्त जप, तप और व्रत रखते हैं और इस दिन भगवान के शिवलिंग रूप के दर्शन करते हैं। इस पवित्र दिन पर देश के हर हिस्सों में शिवालयों में बेलपत्र, धतूरा, दूध, दही, शर्करा आदि से शिव जी का अभिषेक किया जाता है। देश भर में महाशिवरात्रि को एक महोत्सव के रुप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। यह पर्व भोलेनाथ को समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन शिवजी का प्राकट्य हुआ था। साथ ही शिवजी का विवाह भी इस दिन माना जाता है। वहीं मान्यता है जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव की आराधना करता है भोलेनाथ उसके सभी कष्ट हर लेते हैं। आपको बता दें कि इस साल महाशिवरात्रि का त्योहार बुधवार, 26 मार्च को मनाया जाएगा। आपको बता दें वैसे तो हर महीने एक शिवरात्रि आती है, लेकिन महाशिवरात्रि साल में एक बार आती है और इसे बेहद खास माना जाता है।
महादेव और मां पार्वती का विवाह
वहीं शिवपुराण के मुताबिक महाशिवरात्रि के दिन ही भोलेनाथ और मां पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। आपको बता दें कि माता पार्वती ने भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। वहीं उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने फाल्गुन महीने की कृष्ण चतुर्दशी को उनसे विवाह किया। ऐसे में महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। आपको बता दें कि तंत्र शास्त्र अनुसार किसी भी सिद्धि प्राप्त करने के लिए चार रात्रि को प्रमुख माना गया है। जो होली, दिवाली, जन्माष्टमी और महाशिवरात्रि हैं। जिसमें महाशिवरात्रि को प्रमुख माना गया है। इस दिन चार पहर की पूजा का विधान बताया गया है।
क्या है शिवरात्रि और महाशिवरात्रि?
महा” शब्द का अर्थ है “महान” और “शिवरात्रि” का अर्थ है “भगवान शिव की रात”। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस रात को भगवान शिव ने “तांडव” नृत्य किया, जो निर्माण, संरक्षण और विनाश के चक्र का प्रतीक है। त्योहार को सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक माना जाता है और इसे उपवास, पूरी रात जागरण और भगवान शिव की प्रार्थना द्वारा चिह्नित किया जाता है। हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्श में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले
भक्त देवता को दूध, शहद और फल भी चढ़ाते हैं और “ओम नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते हैं।यह त्योहार महान आध्यात्मिक महत्व रखता है और माना जाता है कि यह उन लोगों के लिए आशीर्वाद, शांति और समृद्धि लाता है जो इसे भक्ति के साथ मनाते हैं। यह अपने स्वयं के जीवन पर चिंतन करने और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने का भी समय है।संक्षेप में, महा शिवरात्रि भगवान शिव और उनकी दिव्य शक्ति का सम्मान करने और शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास के लिए उनका आशीर्वाद लेने के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है।
हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, जिसे बड़े ही हषोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता हैयूं तो शिव की उपासना के लिए सप्ताह के सभी दिन अच्छे हैं, फिर भी सोमवार को शिव का प्रतीकात्मक दिन कहा गया है। इस दिन शिव की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। सोमवार चंद्र से जुड़ा हुआ दिन है। शैव पंथ में चंद्र के आधार पर ही सभी व्रत और त्योहार आते हैं। शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं। माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्री शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। इसलिए इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विधान है। प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है।
जब भोलेनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए
शास्त्रों में महाशिवरात्रि मनाने की कई कथाएं मिलती है। वहीं एक पौराणिक कथा के मुताबिक फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर पहली बार भोलेनाथ ज्योतिर्लिंग में प्रकट हुए थे। साथ ही वे एक विशाल अग्निस्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में आए, जिसका कोई आदि और अंत नहीं था। और इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया गया।
महाकुंभ में शिवरात्रि अमृत स्नान का विशेष महत्व है।
महाकुंभ में अमृत स्नान का विशेष महत्व है, जो भारत के प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर हर 12 साल में आयोजित ( किया जाता है। इस दौरान दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु आते हैं और पवित्र डुबकी लगाकर भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं और अपने पापों को धोते हैं,
महाकुंभ का अंतिम स्नान कब?
हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 26 फरवरी को सुबह 11 बजकर 8 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 27 फरवरी को सुबह 8 बजकर 54 मिनट पर होगा। पंचांग को देखते हुए महाशिवरात्रि का पर्व 26 फरवरी को मनाया जाएगा। वहीं, इस दिन महाकुंभ मेले के समापन के साथ इस महापर्व का अंतिम स्नान भी किया जाएगा।
साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।
महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।
महाशिवरात्रि जागृति की रात
महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को, हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं, जो कि सारे सृजन का स्त्रोत है। एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं और दूसरी ओर वे सबसे अधिक करुणामयी भी हैं। वे बहुत ही उदार दाता हैं। यौगिक गाथाओं में वे, अनेक स्थानों पर महाकरुणामयी के रूप में सामने आते हैं। उनकी करुणा के रूप विलक्षण और अद्भुत रहे हैं। इस तरह महाशिवरात्रि विशेष रात्रि है। यह हमारी इच्छा तथा आशीर्वाद है कि आप इस रात में कम से कम एक क्षण के लिए उस असीम विस्तार का अनुभव करें, जिसे हम शिव कहते हैं। यह केवल एक नींद से जागते रहने की रात भर न रह जाए, यह आपके लिए जागरण की रात्रि होनी चाहिए, चेतना व जागरूकता से भरी एक रात।
रिपोर्टर : बब्लू खान
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