पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला

महादेवी वर्मा ने भाषा की धरती पर कविताओं की धारा बहुत ही खूबसूरती के साथ बहाने का काम किया है .हर रचना में गंगा की निर्मल धारा की तरह स्वच्छ और शुद्ध भावनाएं समाहित हैं .महादेवी वर्मा एक ऐसी कवियत्री हैं जिन्होंने ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक से बढ़कर एक रचनाओं को पेशकर साहित्य के क्षेत्र में चार चांद लगाने का कार्य किया है .महदेवी की हर एक रचना बहुत ही खूबसूरत और शानदार है .दीपशिखा महादेवी वर्मा की एक ऐसी कविता-संग्रह है जिसमे समाहित सभी रचनाएँ बहुत ही उम्दा और शानदार हैं .दीपशिखा कविता-संग्रह में "पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला" रचना आज भी लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है ...आइये इस खूबसूरत रचना का पाठ करते हैं .... 


पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला
और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला

दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मृत ,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला

हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.