जीवन एक परीक्षा

मनुष्य के जीवन में सुख-दुख, सफलता-असफलता, उतार-चढ़ाव का चक्र निरंतर चलता रहता है। जीवन केवल फूलों की सेज नहीं है, यह काँटों से भरी एक कठिन यात्रा भी है। इस यात्रा में हर कदम पर मनुष्य को विभिन्न परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। कभी परिस्थितियाँ उसे परखती हैं, तो कभी उसका धैर्य, साहस, और चरित्र कसौटी पर आ जाता है। वास्तव में, जीवन स्वयं एक परीक्षा है, जो हमें हर दिन, हर क्षण कुछ सिखाती है और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
परीक्षा का सामान्य अर्थ है — किसी व्यक्ति की क्षमता, ज्ञान, धैर्य या व्यक्तित्व को परखना। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में दी जाने वाली परीक्षाएँ तो मात्र बाहरी आकलन हैं, परंतु जीवन की परीक्षा कहीं अधिक गहन और व्यापक होती है। जीवन की परीक्षा केवल अंकों और प्रमाणपत्रों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह मनुष्य के व्यवहार, दृष्टिकोण, आत्मविश्वास, और संघर्षशीलता की भी परख करती है।
जीवन की विभिन्न परीक्षाएँ
जीवन में अनेक प्रकार की परीक्षाएँ आती हैं, जो अलग-अलग रूपों में मनुष्य को चुनौती देती हैं।

1. संघर्ष की परीक्षा
संघर्ष जीवन का स्वाभाविक अंग है। कोई भी व्यक्ति बिना संघर्ष के सफलता की ऊँचाइयों को नहीं छू सकता। कठिन परिस्थितियाँ जब सामने आती हैं, तब मनुष्य के धैर्य और संकल्प की परीक्षा होती है। जो व्यक्ति इन संघर्षों का डटकर सामना करता है, वही विजयी बनता है।

2. धैर्य की परीक्षा
जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जब हमें प्रतीक्षा करनी पड़ती है, परिणाम देर से मिलते हैं, अथवा असफलताएँ मिलती हैं। ऐसे समय में धैर्य बनाए रखना सबसे बड़ी परीक्षा होती है। अधीर और उतावले लोग अक्सर इन परीक्षाओं में असफल हो जाते हैं, जबकि धैर्यवान व्यक्ति अंततः सफलता प्राप्त करता है।

3. सदाचार और नैतिकता की परीक्षा
भौतिक सुख-सुविधाओं और लोभ-लालच की दुनिया में नैतिक मूल्यों पर टिके रहना भी एक कठिन परीक्षा है। भ्रष्टाचार, बेईमानी और अन्याय के माहौल में अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना ही जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा मानी जाती है।

4. विपत्तियों की परीक्षा
आपदाएँ और विपत्तियाँ बिना किसी पूर्व सूचना के आती हैं। भूकंप, बाढ़, महामारी, दुर्घटनाएँ आदि मनुष्य की सहनशक्ति और सामूहिक सहयोग की परीक्षा लेती हैं। विपत्ति के समय जो व्यक्ति साहस, संयम और सेवा-भावना का परिचय देता है, वही सच्चा मनुष्य कहलाता है।

5. सफलता की परीक्षा
सफलता पाना जितना कठिन है, उसे संभालकर रखना उससे भी अधिक कठिन है। सफलता का अहंकार मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। जो व्यक्ति सफलता पाकर भी विनम्र, सहृदय और कृतज्ञ बना रहता है, वही इस परीक्षा में सफल माना जाता है।
भारतीय दर्शन में जीवन को एक तपस्या और साधना कहा गया है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा — "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन", अर्थात मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की चिंता करना उसकी प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए।

यह श्लोक जीवन की परीक्षा का सार प्रस्तुत करता है। जब मनुष्य निष्काम भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करता है, तो वह जीवन की परीक्षा में उत्तीर्ण होता है।

 

 

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