क्या बच्चो को मिल रही है सही पेरेंटिंग ?
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ESHITHA - पेरेंटिंग या बाल पालन का मतलब है, बच्चे की देखभाल करना और उसे वयस्कता तक पहुंचाने में मदद करना. यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक, और शैक्षिक विकास को बढ़ावा दिया जाता है. पेरेंटिंग में माता-पिता के अलावा, दादा-दादी और परिवार के अन्य सदस्य भी शामिल हो सकते हैं| आजकल के बिजी शेड्यूल में बच्चे पलना एक महत्वपूर्ण टास्क से कम नहीं है | एक सही पेरेंटिंग बच्चे की सकारात्मक उपज के लिए बेहद आवश्यक है | बच्चो में अच्छे गुण देने के अलावा पेरेंट्स के और भी फ़र्ज़ होते है जन्हें जानना बेहद ज़रूरी हो जाता है|
आज कल बदलते ट्रेंड के साथ लोगो की सोच भी बदल चुकीं है, जो माँ बाप और बच्चो के बीच अन-बन का मुख्य कारण बन चुकी है | आये दिन माता पिता और बच्चो के बीच मन मुटाव देखने को मिलता है, जिसका कारण उनकी अलग-अलग विचार धारा हो सकता है | जिसके चलते कोई भी एक दुसरे की बात मानने को तैयार नहीं होता है | आज कल की जनरेशन जिसे हम जेन -ज़ी की नाम से भी जानते है, उनके साथ कदम से कदम मिलके चलना बड़ी टेढ़ी खीर है | इसका कारण मॉडर्न ट्रेंड को न अपना पाना हो सकता है | आज कल की जनरेशन लेट नाईट पार्टीज,अल्कोहल लेना ,वेस्टर्न कल्चर को अपना रही है, जो की पेरेंट्स की समझ से बहार होता है | कई जगह देखा गया है की पेरेंट्स बच्चो के साथ कदम से कदम मिला के चलते है, लेकिन अभी भी कई लोगो के लिए ये काफी मुश्किल साबित होता है | यहाँ मतलब बच्चो की हर एक विचारधारा में हामी भरना नहीं है बल्कि उन्ही सोच को समझ कर सही गलत को उनके तरीके से समझाना है | अगर ऐसा न हो तो बच्चे माँ बाप से बाते छुपाते है और उन्हें झूठ बोलने में बिलकुल वक़्त नहीं लगता है | अब हम आपको बताएँगे कुछ ऐसी पेरेंटिंग टिप्स के बारे में जो आपको आपके बच्चो को समझने में कारगार होगी ....
1. बच्चों के साथ समय बिताएँ-रोज़ कम से कम कुछ समय बच्चों के साथ बिताएँ।उनकी बातें ध्यान से सुनें और उनकी भावनाओं को समझें।
2. अनुशासन और प्यार का संतुलन बनाए-|अनुशासन ज़रूरी है, लेकिन प्यार और समझदारी से।डांटने के बजाय समझाने की कोशिश करें।
3. अच्छा उदाहरण बनें- बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं, इसलिए खुद अच्छे आदर्श प्रस्तुत करें।विनम्रता, ईमानदारी और मेहनत को अपने जीवन में उतारें।
4. सकारात्मक प्रोत्साहन दें- बच्चों की छोटी-छोटी उपलब्धियों की सराहना करें।आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए प्रेरित करें।
5. शिक्षा और खेल दोनों पर ध्यान दें- पढ़ाई के साथ-साथ खेल और रचनात्मक गतिविधियों को भी बढ़ावा दें।शारीरिक और मानसिक विकास के लिए दोनों ज़रूरी हैं।
6. संचार खुला रखें -बच्चों से नियमित रूप से बातचीत करें ताकि वे अपनी भावनाएँ खुलकर व्यक्त कर सकें।उन्हें ऐसा महसूस कराएँ कि वे आपसे कुछ भी साझा कर सकते हैं।
7. तकनीक का सीमित और सही उपयोग कराएँ -मोबाइल, टीवी और इंटरनेट का सही इस्तेमाल सिखाएँ।स्क्रीन टाइम को सीमित करें और आउटडोर गतिविधियों को बढ़ावा दें।
8. आत्मनिर्भरता सिखाएँ- छोटे-छोटे कार्य खुद करने के लिए प्रेरित करें।अपने निर्णय खुद लेने की आदत डालें।
9. सामाजिक और नैतिक मूल्यों का विकास करें- उन्हें दया, करुणा और सहयोग का महत्व समझाएँ।दूसरों की मदद करना और सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाना सिखाएँ।
10. प्रेशर न बनाएँ, बल्कि प्रेरित करें बच्चों पर पढ़ाई या किसी अन्य क्षेत्र में जबरदस्ती दबाव न डालें।उनके रुचि के अनुसार उन्हें बढ़ने दें और मार्गदर्शन करें।
अच्छे पालन-पोषण का आधार प्यार, समझदारी और धैर्य है।
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