आखिर क्यों घर-घर जाकर भीख मांगते थे जाकिर ?

संगीत मैस्ट्रो जाकिर हुसैन अन इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली है. ग़रीबी से निकलकर उन्होनें देश और विदेश तक अपने नाम और कम का लोहा मनवाया जिसके लिए उन्हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण ,और पद्मश्री से सम्मनित किया गया. उन्हें कई बार ग्रैमी अवार्ड से भी नवाज़ा गया है . उनके अचीवमेंट्स से आज हर कोई वाकिफ है , लेकिन उनका बचपन काफी मुश्किलों में बीता है.
जाकिर हुसैन ने अपनी किताब “ZAKIR HUSSAIN: A Life in Music” में एक किस्से का जिक्र किया है. जिसमें उन्होनें बताया कि उनके जन्म के समय पिता की सेहत काफी खराब थी जिसके चलते तबला वादक को मनहूस समझा जाने लगा था. हैरानी की बात ये है कि ऐसा समझने वाला कोई और नहीं बल्कि खुद उनकी मां थी. . जाकिर ने कहा था, ''जिस समय मेरा जन्म हुआ, उस समय मेरे पिता दिल की बीमारी से पीड़ित थे और बहुत अस्वस्थ थे. किसी ने मेरी मां से कहा था कि मैं एक बदकिस्मत बच्चा हूं क्योंकि मेरा जन्म परिवार के लिए इस सबसे दुखद समय के साथ हुआ था. मेरे पिता, जिन्हें हम अब्बा कहते थे, उस समय इतने गंभीर रूप से बीमार थे कि उनके कई साथी और दोस्त उन्हें अंतिम विदाई देने आए थे. इनमें राज कपूर, नरगिस और अशोक कुमार शामिल थे, जिन्होंने बेवफा में अभिनय किया था. एक ऐसी फिल्म जिसका संगीत अब्बा ने ही दिया था.''
जब जाकिर छोटे थे तो मुहर्रम के दौरान उनकी मां उन्हें हरा कुर्ता पहनाती थी, और एक झोला देती थी, जिसके बाद वो अपने मोहल्ले में घर-घर जाकर भीख मांगते थे. और लोग उन्हें थोड़े पैसे या कुछ मिठाइयां देते थे. जिसे लेकर वो मस्जिद या माहिम दरगाह में चले जाते थे और बड़े होने पर उन्होनें भारत में रहते हुए इस प्रथा को जारी रखा. उनके अमेरिका जाने के बाद कई सालों तक उनकी मां ने घर पर ये तपस्या जारी रखी.
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