मुसलसल बेकली दिल को रही है, मगर जीने की सूरत तो रही है...
नासिर काज़मी उर्दू के एक मशहूर शायर हैं इनका जन्म 8 दिसंबर 1925 को पंजाब में हुआ... बाद में यह पाकिस्तान जाकर बस गए. बंग-ए-नौ, पहली बारिश आदि इनके प्रमुख संग्रह हैं.. इनकी मृत्यु 2 मार्च 1972 को हुई थीं.. तो चलिए नासिर काज़मी की इस शायरी को पढ़ते हैं...
मुसलसल बेकली दिल को रही है
मगर जीने की सूरत तो रही है
मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा मारा
ये बस्ती चैन से क्यूँ सो रही है
चले दिल से उम्मीदों के मुसाफ़िर
ये नगरी आज ख़ाली हो रही है
न समझो तुम इसे शोर-ए-बहाराँ
ख़िज़ाँ पत्तों में छुप कर रो रही है
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
उदासी बाल खोले सो रही है
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