पहली बार मैंने, भौंरे को कमल में बदलते हुए- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

पहली बार मैंने, भौंरे को कमल में बदलते हुए- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
पहली बार
मैंने
भौंरे को कमल में
बदलते हुए,
फिर क़लम को बदलते
नील जल में,
फिर नीले जल को
असंख्य श्वेत पक्षियों में,
फिर श्वेत पक्षियों को बदलते
सुर्ख़ आकाश में,
फिर आकाश को बदलते
तुम्हारी हथेलियों में,
और मेरी आँखें बंद करते।
इस तरह आँसुओं को
स्वप्न बनते—
पहली बार मैंने देखा।
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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