हो जाए न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं- हरिवंश राय बच्चन

RATNA 

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला

पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला

मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला

यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूंगा पी हाला
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला
निशा निमन्त्रण
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

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