मकर संक्रांति पर सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘नहान’

RATNA
मकर संक्रांति पर सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘नहान’
जन पर्व मकर संक्रांति आज
उमड़ा नहान को जन समाज
गंगा तट पर सब छोड़ काज।
नारी नर कई कोस पैदल
आरहे चले लो, दल के दल,
गंगा दर्शन को पुण्योज्वल!
लड़के, बच्चे, बूढ़े, जवान,
रोगी, भोगी, छोटे, महान,
क्षेत्रपति, महाजन औ’ किसान।
दादा, नानी, चाचा, ताई,
मौसा, फूफी, मामा, माई,
मिल ससुर, बहू, भावज, भाई।
गा रहीं स्त्रियाँ मंगल कीर्तन,
भर रहे तान नव युवक मगन,
हँसते, बतलाते बालक गण।
अतलस, सिंगी, केला औ’ सन
गोटे गोखुरू टँगे, स्त्री जन
पहनीं, छींटें, फुलवर, साटन।
बहु काले, लाल, हरे, नीले,
बैगनीं, गुलाबी, पट पीले,
रँग रँग के हलके, चटकीले।
-सुमित्रानंदन पंत
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