गोपाल प्रसाद व्यास की लिखी हुई “खूनी हस्ताक्षर”कविता है ख़ास
RATNA
भारत राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए भारत के कई वीरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। मां भारती को गुलामी की जंजीरों से बाहर निकालने और क्रूर ब्रिटिशों की क्रूरता से भारत के कण-कण को बचाने के लिए अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने संघर्ष कर भारत को स्वतंत्र कराया। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक 23 जनवरी को जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी हैं, जिन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज का नेतृत्व करके युवाओं को मातृभूमि के लिए क्रांति के राह पर चलकर आज़ादी पाने को प्रेरित किया। आज भी युवाओं को प्रेरित करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती को हर वर्ष 23 जनवरी को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
ऐसी शख्सियत को कई कविताएं समर्पित हैं, जिनमें से गोपाल प्रसाद व्यास की लिखी हुई “खूनी हस्ताक्षर” कविता ख़ास है , जिसको पढ़कर आप देशभक्ति की भावना से जुड़ जाएंगे. यह कविता कुछ इस प्रकार है:
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!
उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुर्बानी थी।
बोले, "स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।
आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।
आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है|
यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!
आजानुबाहु ऊँची करके,
वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।"
हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इंकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।
“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।
बोले सुभाष, "इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?
इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।
पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!
वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!
वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!"
सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढ़ाते हैं!
साहस से बढ़े युवक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!
फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!
उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।
-गोपाल प्रसाद व्यास
इस कविता के माध्यम से कवि गोपाल प्रसाद व्यास जी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में देशभक्तों के त्याग और बलिदान की गाथा को गाते हैं। कवि इस कविता में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के प्रसिद्ध भाषण “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का जिक्र करते हैं, जिसमें नेताजी ने देशवासियों से अपने प्राणों की आहुति देने का आह्वान किया था। इसके बाद भारत के नागरिकों में जैसे बलिदान देने की होड़ सी मच गई थी। इस कविता का उद्देश्य समाज को स्वतंत्रता के लिए हुए संघर्षों को बयां करना है।
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