'जिन्दगीनामा'-ज़िन्दा रुख़ ,पंजाब के किसानों-ग्रामीणों के जीवन का चित्रण है. - कृष्णा सोबती

23 वर्ष की आयु से ही लेखन में सक्रिय रही कृष्णा सोबती की पहली कहानी 'सिक्का बदल गया है' अज्ञेय द्वारा संपादित 'प्रतीक' में जुलाई, 1948 को प्रकाशित हुई थी। उनके द्वारा लिखी गई कई ऐसी कहानियां हैं, जो आम व्यक्ति के जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराता है. 'मित्रो मरजानी' कृष्णा सोबती की लिखी हुई एक ऐसी कहानी है जो एक आम मध्यमवर्गीय परिवार में घटित होती है. हिन्दी की विख्यात साहित्यकार के कृष्णा सोबती द्वारा लिखी हुई उपन्यास ज़िन्दगीनामा-ज़िन्दा रुख़ के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

कथावस्तु इस उपन्यास पर प्रकाश डालते हुए गोपाल राय लिखते हैं कि- "जिन्दगीनामा बीसवीं शताब्दी के प्रथम पन्द्रह वर्षों में पंजाब के किसानों-ग्रामीणों के जीवन का चित्रण है । यह जिन्दगी निखालिस यथार्थ के रूप में सामने आती है; पंजाबी किसानों की मेहनत-मशक्कत से भरी अक्खड़, सन्तुष्ट और मुक्त जिन्दगी, जिसमें महाजन का शोषण और पुलिस का आतंक भी कोई ज्यादा हलचल नहीं पैदा करता. 

कृष्णा सोबती के कालजयी उपन्यासों सूरजमुखी अंधेरे के, दिलोदानिश, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, मित्रो मरजानी, जैनी मेहरबान सिंह, हम हशमत, बादलों के घेरे ने हिंदी साहित्य के कथा जगत को ताजगी से भर दिया। आईये पढ़ते हैं उनके द्वारा लिखी गई कविता तर्ज बदलिए.... 


तर्ज़ बदलिए...
गुमशुदा घोड़े पर सवार
हमारी सरकारें
नागरिकों की तानाशाही से
लामबंदी क्यूं करती हैं
और दौलतमंदों की
सलामबंदी क्यूं करती हैं
सरकारें क्यूं भूल जाती हैं
कि हमारा राष्ट्र एक लोकतंत्र है
और यहां का नागरिक
गुलाम दास नहीं
वो लोकतांत्रिक राष्ट्र
भारत महादेश का
स्वाभिमानी नागरिक है
सियासत की यह
तर्ज़ बदलिए...

 

 

 

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.