'आग की भीख' - रामधारी सिंह दिनकर की सर्वेष्ठ रचनाओं में से एक

हिंदी के प्रसिद्ध लेखक, कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं. उनकी कविताओं ने आजादी की लड़ाई में लोगों को जागरूक किया. उनकी प्रसिद्ध रचनाएं उर्वशी, रश्मिरथी, रेणुका, संस्कृति के चार अध्याय, हुंकार, सामधेनी, नीम के पत्ते हैं. उनकी प्रसिद्ध  कविताओं में से एक 'आग की भीख' है, आइए उस कविता पर नज़र डालते हैं. 


धुँधली हुईं दिशाएँ, छाने लगा कुहासा,
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा।

कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है;
मुँह को छिपा तिमिर में क्यों तेज़ रो रहा है?

दाता, पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे;
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे।

प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ।
चढ़ती जवानियों का शृंगार माँगता हूँ।

बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है?

मँधार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा या सौभाग्य का सितारा?

आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा,
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा।

तम-वेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ।
ध्रुव की कठिन घड़ी में पहचान माँगता हूँ।

आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है,
बल-पुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है,

अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ, ढेर हो रहा है,
है रो रही जवानी, अँधेरा हो रहा है।

निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है;
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है।

पंचास्य-नाद भीषण, विकराल माँगता है।
जड़ता-विनाश को फिर भूचाल माँगता है।

मन की बँधी उमंगें असहाय जल रही हैं,
अरमान-आरजू की लाशें निकल रही हैं।

भींगी-खुली पलों में रातें गुज़ारते हैं,
सोती वसुंधरा जब तुझको पुकारते हैं।

इनके लिए कहीं से निर्भीक तेज़ ला दे,
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे,

उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ।
विस्फोट माँगता हूँ, तूफ़ान माँगता हूँ।

आँसू-भरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे,
मेरे श्मशान में आ शृंगी ज़रा बजा दे;

फिर एक तीर सीनों के आर-पार कर दे,
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे।

आमर्ष को जगानेवाली शिखा नई दे,
अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे।

विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ,
बेचैन ज़िंदगी का मैं प्यार माँगता हूँ।

ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे,
जो राह हो हमारी उस पर दिया जला दे।

गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे;
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे।

हम दे चुके लहू हैं, तू देवता, विभा दे,
अपने अनल-विशिख से आकाश जगमगा दे।

प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ,
तेरी दया विपद् में भगवान, माँगता हूँ।

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