बसंत के इस मौसम में हिंदी कविताओं के चुनिंदा अंश, पढ़िए-

बसंत ऋतु वर्ष की एक ऋतु है जिसमें वातावरण का तापमान सुखद रहता है। फरवरी से मार्च तक होने वाली इस ऋतु की विशेष्ता है मौसम का गरम होना, फूलो का खिलना, पौधो का हरा भरा होना और बर्फ का पिघलना। जाती हुई सर्दियां, बड़े होते दिन, गुनगुनी धूप धीरे-धीरे तेज होती हुई, काव्य प्रेमियों को हमेशा आकर्षित करती रही हैं। यह ऋतुराज बसंत का आगमन है। यह मौसम हमेशा से भारतीय कवियों/शायरों और गीतकारों को आकर्षित करता रहा है। आईये पढ़ते हैं बसंत के इस मौसम में प्रसिद्ध हिंदी कविताओं के चुनिंदा अंश-
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिम की रेख देख पाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
~अटल बिहारी वाजपेयी
सिर से पैर तक
फूल-फूल हो गई उसकी देह,
नाचते-नाचते हवा का
बसंती नाच ।
~केदारनाथ अग्रवाल
कलिका के चुम्बन की पुलकन
मुखरित जब अलि के गुंजन में
तब उमड़ पड़ा उन्माद प्रबल
मेरे इन बेसुध गानों में;
ले नई साध ले नया रंग
मेरे आंगन आया बसंत
~भगवतीचरण वर्मा
राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी
लेकिन दोनों की कितनी भिन्न कहानी
राजा के मुख में हँसी कण्ठ में माला
रानी का अन्तर द्रवित दृगों में पानी
~ रामधारी सिंह "दिनकर"
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