तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो- राहत इंदौरी
डॉ. राहत इंदौरी पिछली पांच दहाइयों से उर्दू-हिंदी दोनों ज़बानों के जानने वालों के बीच एक जैसे सुने जाने वाले और पढ़े जाने वाले शायर थे। राहत इंदौरी वो कलाकार हैं जो अपने अंदाज में झूमकर कला को बखूबी अंजाम देते थे। डॉ. राहत इंदौरी के शेर हर लफ्ज़ के साथ मोहब्बत की नई शुरुआत करते हैं, यही नहीं वो अपनी ग़ज़लों के ज़रिए हस्तक्षेप भी करते हैं और व्यवस्था को आइना भी दिखाते हैं। आईये पढ़ते हैं उनके द्वारा कहे कुछ शेर-
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे
...फकीरी पे तरस आता है
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे
फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
बहुत हसीन है दुनिया
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं
मैं बच भी जाता तो...
किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
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