महाकुंभ: श्रद्धा का संगम, भक्ति का चयन

प्रयागराज का कुंभ मेला सिर्फ एक भव्य आयोजन नहीं, बल्कि एक आस्था और विश्वास का जीवित उदाहरण है। हर 144 वर्षों में जब यह मेला आयोजित होता है, तो नदियों का संगम न केवल भौतिक रूप से, बल्कि आत्मिक रूप से भी मनुष्य को एक नई दिशा दिखाता है। महाकुंभ के इस धर्मिक महीने में आईये पढ़ते हैं कुंभ मेला पर आधारित ये कविता-  

संगम की धरती का अलौकिक नजारा,
प्रयागराज में कुंभ का उत्सव दोबारा।
गंगा, यमुना, सरस्वती का मिलन,
श्रद्धा का संगम, भक्ति का चयन।

दिव्य स्नान में डुबकी लगाएंगे,
पुण्य की गंगा में मन को बहाएंगे।
हर हर गंगे के जयकारे होंगे,
आत्मा के सारे पाप विसराएंगे।

शाही जुलूस और साधुओं की टोली,
हर चेहरे पर भक्ति की रंगोली।
अखंड अखाड़े, तपस्वियों का जमघट,
धर्म की बातें, सत्य का पट।

चमके दीप और मंत्रों की गूंज,
मेला बनेगा आस्था का पूंज।
संत-महात्मा देंगे सच्चे उपदेश,
जीवन की गहराई का होगा प्रवेश।

नौका विहार और भजन का रस,
हर कोई डूबेगा आत्मा के बस।
संगम तट पर होगा अद्भुत प्रकाश,
कुंभ मेला 2025 बनेगा खास।

आओ प्रिय, इस कुंभ में आएं,
भक्ति और श्रद्धा का दीप जलाएं।
प्रयागराज की महिमा गाएं,
पुण्य कमाएं, जीवन सजाएं।

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