जब बिस्मिल्लाह खाँ को “बाबा”ने दिया था दिव्य दर्शन

जब भी संगीत की बात हो और शहनाई का ज़िक्र हो, तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ साहब का नाम ज़रूर आता है। बिस्मिल्लाह खाँ का नाम आते ही शहनाई की मधुर धुन याद आ जाती है और शहनाई का नाम लेते ही बिस्मिल्लाह खाँ साहब का अक्स उभरता है। वे शहनाई का पर्याय थे। बिस्मिल्लाह खाँ जैसे फनकार सदियों में ही यदा कदा होते हैं। उनमें बनारसी रंग-ढंग कूट-कूट के भरा था। मुस्लिम समुदाय में जन्‍मे बिस्मिल्लाह खाँ मंदिर में रियाज़ करते थे और सरस्‍वती माँ की पूजा करते थे। आज इसी महान शहनाई वादक का जन्‍मदिवस है। तो आइये आपको बताते हैं मन्दिर में रियाज़ करते समय का एक किस्सा, जब ‘बाबा विश्वनाथ’ ने उन्‍हें दिया था दर्शन।

एक बार वो ईद मनाने मामू के घर बनारस गए थे और जिसके बाद बनारस उनकी कर्मस्थली बन गई। उनके मामू और गुरु अली बख्श साहब बालाजी मंदिर में शहनाई बजाते थे और वहीं रियाज भी करते थे। यहीं पर उन्‍होंने बिस्मिल्लाह खाँ को शहनाई सिखानी शुरू की थी। उनके मामू उन्हें मंदिर में रियाज के लिए कहते थे और कहा था कि अगर यहां कुछ हो, तो किसी को बताना मत।
बिस्मिल्लाह साहब के मुताबिक, ‘एक रात मुझे कुछ महक आई। महक बढ़ती गई। मैं आंख बंद करके रियाज कर रहा था। मेरी आंख खुली, तो देखा हाथ में कमंडल लेकर ‘बाबा’ खड़े हैं। दरवाजा अंदर से बंद था, तो किसी के कमरे में आने का मतलब ही नहीं था। मैं रुक गया। उन्होंने (बाबा) कहा बेटा बजाओ, लेकिन मैं पसीना-पसीना था। वे हंसे, बोले खूब बजाओ… खूब मौज करो और गायब हो गए। मुझे लगा कि कोई फकीर घुस आया होगा, लेकिन आसपास सब खाली था।’ बिस्मिल्लाह साहब घर गए। उन्‍होंने अपने मामू को इसके बारे में बताया। उनके मुताबिक, मामू समझ गए थे कि क्या हुआ है। यह वाकया बताने के बाद बिस्मिल्लाह साहब को थप्पड़ मिला, क्योंकि मामू ने कुछ भी होने पर किसी को बताने से मना किया था। बता दें कि बनारस में ‘बाबा’ विश्‍वनाथ जी को कहते हैं।

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