शैलेश मटियानी :अर्धांगिनी कहानियों के साथ प्रेरणादायक संस्मरण का मेल

शैलेश मटियानी का मूल नाम रमेश चंद्र मटियानी था, लेकिन मशहूर हुए शैलेश मटियानी के नाम से ही। शैलेश हिंदी साहित्य जगत में नई कहानी विधा के अग्रणी कथाकार थे। उन्होंने कविताएं भी लिखी हैं। जनकवि बाबा नागार्जुन उन्हें 'हिंदी का गोर्की' कहते थे। उनकी आरंभिक कहानियाँ 'रंगमहल' और 'अमर कहानी' पत्रिका में प्रकाशित हुई। उन्होंने 'बोरीवली से बोरीबन्दर' तथा 'मुठभेड़', जैसे उपन्यास, चील, अर्धांगिनी जैसी कहानियों के साथ ही अनेक निबंध तथा प्रेरणादायक संस्मरण भी लिखे हैं।आईये पढ़ते हैं शैलेश मटियानी द्वारा लिखी हुई ये 3कविताएं- 

गीत को
उगते हुए
सूरज-सरीखे छंद दो
शौर्य को फिर
शत्रु की
हुंकार का अनुबंध दो ।

प्राण रहते
तो न देंगे
भूमि तिल-भर देश की
फिर
भुजाओं को नए
संकल्प-रक्षाबंध दो !
होंठ हँसते हैं,
मगर मन तो दहा जाता है
सत्य को इस तरह
सपनों से कहा जाता है ।

खुद ही सहने की जब
सामर्थ्य नहीं रह जाती
दर्द उस रोज़ ही
अपनों से कहा जाता है !
खंडित हुआ
ख़ुद ही सपन,
तो नयन आधार क्या दें
नक्षत्र टूटा स्वयं,
तो फिर गगन आधार क्या दे

जब स्वयं माता तुम्हारी ही
डस गई ज्यों सर्प-सी
तब कौन
तपते भाल पर
चंदन–तिलक-सा प्यार दे !

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.