लोक जीवन और प्रकृति से गहरा प्रेम है बालकवि बैरागी की रचनाएं

जीवन और कर्म के क्षेत्र में साधारण की असाधारण यात्रा हमेशा ही सबको प्रभावित करती है। एक निहायत सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले बालकवि बैरागी ने साहित्य और सिनेमा से लेकर राजनीति तक जिस तरह का सघन और सार्थक जीवन जिया, वह अपने आप में एक मिसाल है।एक संवेदनशील कवि के तौर पर ‘अपनी गंध नहीं बेचूंगा’, ‘गन्ने मेरे भाई’ और ‘दीवट पर दीप’ जैसी कविताओं में उनका लोक जीवन और प्रकृति से गहरा प्रेम झलकता है।आईये पढ़ते हैं बालकवि बैरागी की लिखी हुई कविता“झरगये पात”


झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

नव कोंपल के आते-आते
टूट गये सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी

झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

कहीं रंग है, कहीं राग है
कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है
और धूसरित पात नाथ को
टुक-टुक देखे शाख विरहनी
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

पवन पाश में पड़े पात ये
जनम-मरण में रहे साथ ये
"वृन्दावन" की श्लथ बाहों में
समा गई ऋतु की "मृगनयनी"
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

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