अमीर खुसरो : खड़ी बोली हिन्दी के प्रथम और सूफीयाना कवि

अमीर खुसरो, दिल्ली सल्तनत के कई शासकों के दरबारी कवि थे. वे बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, और अलाउद्दीन खिलजी के समकालीन थे. वे सूफ़ी कवि थे. वे खड़ी बोली हिन्दी के पहले कवि थे. वे फ़ारसी भाषा के महान कवियों में से एक माने जाते हैं. अमीर खुसरो भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक और संगीत विरासत में अहम व्यक्ति थे. उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता, प्रेम, सौहादर्य, मानवतावाद, और सांस्कृतिक समन्वय के लिए काम किया. अपने काव्य और संगीत के ज़रिए भारत की सूफ़ी संस्कृति के निर्माण में अहम योगदान दिया. उन्होंने कई रचनाएं कीं, जिनमें से कुछ हैं- मिफ़ता-उल-फ़ुतूह, खज़ाइन-उल-फ़ुतूह, आशिका, नूह सिपिहर, तुगलकनामा, किरान-उस-सादेन. आईये पढ़ते हैं उनके द्वारा लिखे हुए दोहे- 

ख़ुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।

तन मेरो मन पीउ को, दोउ भए एक रंग॥

ख़ुसरो कहते हैं कि उसके सौभाग्य की रात्रि बहुत अच्छी तरह से बीत गई, उसमें परमात्मा प्रियतम के साथ जीवात्मा की पूर्ण आनंद की स्थिति रही। वह आनंद की अद्वैतमयी स्थिति ऐसी थी कि तन तो जीवात्मा का था और मन प्रियतम का था, परंतु सौभाग्य की रात्रि में दोनों मिलकर एक हो गए, अर्थात दोनों में कोई भेद नहीं रहा और द्वैत की स्थिति नहीं रही।

गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस।

चल ख़ुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस॥

ख़ुसरो कहते हैं कि आत्मा रूपी गोरी सेज पर सो रही है, उसने अपने मुख पर केश डाल लिए हैं, अर्थात वह दिखाई नहीं दे रही है। तब ख़ुसरो ने मन में निश्चय किया कि अब चारों ओर अँधेरा हो गया है, रात्रि की व्याप्ति दिखाई दे रही है। अतः उसे भी अपने घर अर्थात परमात्मा के घर चलना चाहिए।

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.