अमृता प्रीतम: इस निवाले का बदन नंगा, खुशबू की ओढ़नी फटी हुई

31 अगस्त 1919 को पाकिस्तान के गुजरांवाला में अमृता प्रीतम का जन्म हुआ था. अमृता प्रीतम की कविताओं में जो बिम्ब प्रयोग होते हैं, वह अनायास ही अपनी तरफ़ खींच लेते हैं। उन बिम्बों को पढ़कर और उनकी गहराई में उतरकर अमृता के व्यक्तित्व का भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अमृता प्रीतम का निधन 31 अक्टूबर 2005 को हुआ। आज भी उनके द्वारा लिखी कविताएं पढ़कर उनकी वही गहराई की अनुभूति होती है. आईये पढ़ते हैं उनके द्वारा लिखी हुई कुछ चुनिंदा रचनाओं में से एक 'निवाला'
निवाला
जीवन-बाला ने कल रात
सपने का एक निवाला तोड़ा
जाने यह खबर किस तरह
आसमान के कानों तक जा पहुँची
बड़े पंखों ने यह ख़बर सुनी
लंबी चोंचों ने यह ख़बर सुनी
तेज़ ज़बानों ने यह ख़बर सुनी
तीखे नाखूनों ने यह खबर सुनी
इस निवाले का बदन नंगा,
खुशबू की ओढ़नी फटी हुई
मन की ओट नहीं मिली
तन की ओट नहीं मिली
एक झपट्टे में निवाला छिन गया,
दोनों हाथ ज़ख्मी हो गये
गालों पर ख़राशें आयीं
होंटों पर नाखूनों के निशान
मुँह में निवालों की जगह
निवाले की बाते रह गयीं
और आसमान में काली रातें
चीलों की तरह उड़ने लगीं...
- अमृता प्रीतम
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