महाशिवरात्रि 2025: जटा में जिनके बसती माँ गंगा, गले में रहते शेषनाग

 

जटा में जिनके बसती माँ गंगा, गले में रहते शेषनाग,

शिव का आशीर्वाद जिसे भी मिलता, उसके बड़े ही भाग।
अनाथों के कहलातें नाथ, जय बाबा भोलेनाथ,
विपत्ति में जो भी नाम ले शिव का, कृपा करते भोलेनाथ।

सभी जंतुओं के स्वामी अधिनायक, पूरे जगत के प्रतिपालक,
हँस-हँस कर किया विष पान, शेषनाग के हैं गल धारक।
झूम-झूम बजाते डमरू का राग, भर दी माँ पार्वती की माँग,
करते जब तांडव नृत्य भोलेनाथ, होकर उन्मत्त पीते भाँग।

भुजाओं से निकले जिनके भुजंग, डमरू से मधुर तरंग,
गूँज उठती जब ॐ की ध्वनि, जटाओं से निकलती माँ गंग।
मस्तक पर शोभता त्रिपुण्ड, चंद्रशेखर जग में कहलातें हैं,
आज महाशिवरात्रि को सब, शिव को दूध से नहलातें हैं।

पार्वती इनकी भार्या, अशोकसुंदरी इनकी कहलाती सुता,
कार्तिक गणेश दो पुत्र इनके, नहुष इनके कहलातें जमाता।
चलो मिलकर शिवरात्रि मनाएं, चन्दन रोली से पूजा की थाल सजाएँ,
आज तो है महाशिवरात्रि, चलो सब मिलकर महाभिषेक के साक्षी बन जाएँ।

फाल्गुन माह, कृष्ण पक्ष, तिथि है यह चतुर्दशी, है आज महाशिवरात्रि,
शिव भक्तों का है इस दिन उपवास, प्रभु करेंगे उनकी हर इच्छा पूरी।
बारह घंटों के चार प्रहर में होंगी, भगवान शिव की विधिवत अर्चना,
“ॐ नमः शिवाय” का करते जाप, तिल, चावल, घी से करते आराधना।

इसी पावन दिन को हुए प्रकट, लेकर प्रभु शिवलिंग का स्वरूप,
इसी पावन तिथि को हुआ संपन्न, प्रभु शिव और माँ पार्वती का विवाह अभिरूप।
इसी दिन धारण किया प्रभु ने, परम ब्रह्म का साकार रूप,
अविवाहित कन्याएँ करती उपवास, कल्पना करती वर का शिव के प्रतिरूप।

करेंगे इस दिन सभी दम्पति मिलकर, शिवलिंग का जलाभिषेक,
सुख की मनोकामना करते हुए, करेंगे प्रभु शिव का रुद्राभिषेक।
शिव मन्त्रों का होगा जाप, “ॐ नमः शिवाय” होगा हर ओर गुंजायमान,
लगाकर चन्दन का लेप, शिवलिंग का होगा पंचामृत से स्नान।

इस महा शिवरात्रि के पावन पर्व पर, लेवें हम सभी एक प्रण,
जीवन को बनाएँगे शुद्ध, सरल, छोड़कर सारे व्यसन।
सनातनी विचारों की बहाएँगे सरिता, पवित्रता की बहाएँगे जलधार,
सारे कदाचारों का करेंगे परित्याग, अपनाएँगे जीवन में पूर्ण सदाचार।

नव भारत का भी करें जलाभिषेक, करेगा राष्ट्र प्रगति अतिरेक,
राष्ट्रवाद का फहरा दें परचम, राष्ट्र का करें रुद्राभिषेक।
सौहार्द और सद्भाव का बजेगा संगीत, समरसता का गूँजेगा तराना,
मिट जाए सारे क्लेश और द्वेष, हो चहूँओर प्रीत और सदभावना।

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