धर्मवीर भारती: तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास!

धर्मवीर भारती को 1972 में भारत सरकार द्वारा साहित्य के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता एक क्लासिक बन गया। भारती के सूरज का सातवाँ घोड़ा को कहानी कहने में एक अनूठा प्रयोग माना जाता है और 1992 में श्याम बेनेगल द्वारा इसी नाम से एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता फिल्म बनाई गई थी। प्रस्तुत है धर्मवीर भारती की कविता "उदास तुम"-
तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास!
ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में, सूने खंडहर के आस-पास
मदभरी चाँदनी जगती हो!
मुँह पर ढक लेती हो आँचल,
ज्यों डूब रहे रवि पर बादल।
या दिन भर उड़ कर थकी किरन,
सो जाती हो पाँखें समेट, आँचल में अलस उदासी बन;
दो भूले-भटके सांध्य विहग
पुतली में कर लेते निवास।
तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास!
खारे आँसू से धुले गाल,
रूखे हल्के अधखुले बाल,
बालों में अजब सुनहरापन,
झरती ज्यों रेशम की किरने संझा की बदरी से छन-छन,
मिसरी के होंठों पर सूखी,
किन अरमानों की विकल प्यास!
तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास!
भँवरों की पाँते उतर-उतर
कानों में झुक कर गुन-गुन कर,
हैं पूछ रही क्या बात सखी?
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