सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" और हरिवंशराय बच्चन की होली कविताएं

होली हर्ष और उल्लास का पर्व है। इस दिन लोग भी गिले, शिकवे बुलाकर प्यार का रंग लगाते हैं। कवियों ने इस प्यार के त्यौहार पर अनेक सुंदर रचनाएं लिखी हैं। आईये पढ़ते हैं रंगों वाली होली पर हिंदी साहित्य के नामचीन लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" और हरिवंशराय बच्चन द्वारा लिखी हुई कविताएं- 

केशर की कलि की पिचकारी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

केशर की, कलि की पिचकारी
पात-पात की गात सँवारी 

राग-पराग-कपोल किए हैं
लाल-गुलाल अमोल लिए हैं
तरू-तरू के तन खोल दिए हैं
आरती जोत-उदोत उतारी
गन्ध-पवन की धूप धवारी 

हरिवंशराय बच्चन
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
केदारनाथ अग्रवाल
फूलों ने होली फूलों से खेली

लाल गुलाबी पीत-परागी
रंगों की रँगरेली पेली

काम्य कपोली कुंज किलोली
अंगों की अठखेली ठेली

मत्त मतंगी मोद मृदंगी
प्राकृत कंठ कुलेली रेली

 

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