भारतेन्दु हरिश्चंद्र : गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में

भारतेन्दु हरिश्चंद्र विविध भाषाओं में रचनायें करते थे, ब्रजभाषा पर इनका असाधारण अधिकार था। इस भाषा में इन्होंने अदभुत श्रृंगारिकता का परिचय दिया है। इनका साहित्य प्रेममय था, क्योंकि प्रेम को लेकर ही इन्होंने अपने 'सप्त संग्रह' प्रकाशित किए हैं। प्रेम माधुरी इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना है। उन्हीं रचनाओं में से आईये पढ़ते हैं होली के महीने में उनके द्वारा लिखी हुई होली पर कविता- 

गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में

बुझे दिल की लगी भी तो ऐ मेरे यार होली में

नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में

'रसा' गर जाम-ए-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझ को भी
नशीली आँख दिखला कर करो सरशार होली में

- भारतेन्दु हरिश्चंद्र

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