रश्मि भारद्वाज की कविता- वह जो असाधारण स्त्री है

वह जो असाधारण स्त्री है 

वह तुम्हारे प्रेम में पालतू हो जाएगी 
उसे रुचिकर लगेगी वनैले पशुओं-सी तुम्हारी कामना 
रात्रि के अंतिम प्रहर में 
तुम्हारे स्पर्श से उग आएगी उसकी स्त्री 
पर उसे नहीं भाएगा 
यह याद दिलाए जाना 
सूर्य की प्रतीक्षा के दौरान 
तुम्हें प्रेम करते हुए 
वह त्याग देगी अपनी आयु 
अपनी देह 
तुम देख सकोगे 
उसकी अनावृत आत्मा 
बिना किसी शृंगार के 

वह इतनी मुक्त है 
कि उसे बाँधना 
उसे खो देना है 
वह इतनी बँधी हुई है 
कि चाहेगी उसकी हर श्वास पर 
अंकित हो तुम्हारा नाम

तुम्हारे गठीले बाज़ू 
उसे आकर्षित कर सकते हैं 
पर उसे रोक रखने की क्षमता 
सिर्फ़ तुम्हारे मस्तिष्क के वश में है 
तुम्हारे ज्ञान के अहंकार से 
उसे वितृष्णा है 
वह चाहती है 
एक स्नेही, उदार हृदय 
जो जानता हो झुकना 

उस स्त्री का गर्वोन्नत शीश 
नत होगा सिर्फ़ तुम्हारे लिए 
जब उसे ज्ञात हो जाएगा 
कि उसके प्रेम में 
सीख चुके हो तुम 
स्त्री होना 

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