शहीद दिवस: रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविता- गाँधी

शहीद दिवस, जो कि सर्वोदय दिवस के रूप में भी जाना जाता है, शहीद, जिसका अर्थ होता है सत्य के लिए लड़ते हुए मरने वाला या कर्तव्य के लिए अपने को कुरबान कर देने वाला। प्रस्तुत है शहीद दिवस के अवसर पर महात्मा गांधी की याद में रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविता- गाँधी

देश में जिधर भी जाता हूँ,
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ
"जड़ता को तोड़ने के लिए
भूकम्प लाओ ।
घुप्प अँधेरे में फिर
अपनी मशाल जलाओ ।
पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर
पवनकुमार के समान तरजो ।
कोई तूफ़ान उठाने को
कवि, गरजो, गरजो, गरजो !"
सोचता हूँ, मैं कब गरजा था ?
जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,
वह असल में गाँधी का था,
उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था ।

तब भी हम ने गाँधी के
तूफ़ान को ही देखा,
गाँधी को नहीं ।
वे तूफ़ान और गर्जन के
पीछे बसते थे ।
सच तो यह है
कि अपनी लीला में
तूफ़ान और गर्जन को
शामिल होते देख
वे हँसते थे ।
तूफ़ान मोटी नहीं,
महीन आवाज़ से उठता है ।
वह आवाज़
जो मोम के दीप के समान
एकान्त में जलती है,
और बाज नहीं,
कबूतर के चाल से चलती है ।

गाँधी तूफ़ान के पिता
और बाजों के भी बाज थे 
क्योंकि वे नीरवता की आवाज़ थे।

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