'आधुनिक मीरा' महादेवी वर्मा की जयंती पर पेश है उनकी चुनिंदा कविताएँ -

काव्य जगत की 'आधुनिक मीरा' महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 नें हुआ था. महादेवी वर्मा हिन्दी भाषा की एक प्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्हें 'आधुनिक मीरा' भी कहा जाता है। सात वर्ष की उम्र से ही कविताएँ लिखने लगीं और 1925 तक वे एक सफल कवियित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं.
उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं: नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा और यामा. यामा के लिए उन्हें 1982 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. कविता के अलावा, उन्होंने रेखाचित्र और संस्मरण जैसे गद्य साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी गद्य रचनाएँ हैं: पथ के साथी, अतीत के चलचित्र तथा स्मृति की रेखाएँ. उनका निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ. उनके जयंती के अवसर पर पेश है उनकी 2 चुनिंदा कविताएँ -
1. यह मंदिर का दीप
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो
रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,
गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,
जब था कल कंठो का मेला,
विहंसे उपल तिमिर था खेला,
अब मन्दिर में इष्ट अकेला,
इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!
चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,
प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,
झर सुमन बिखरे अक्षत सित,
धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित
तम में सब होंगे अन्तर्हित,
सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!
पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,
प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,
सांसों की समाधि सा जीवन,
मसि-सागर का पंथ गया बन
रुका मुखर कण-कण स्पंदन,
इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!
झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी
आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी,
जब तक लौटे दिन की हलचल,
तब तक यह जागेगा प्रतिपल,
रेखाओं में भर आभा-जल
दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!
2. जो तुम आ जाते एक बार
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार
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