मार्था मेडेइरोस की मशहूर कविता- आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं

1961 में पोर्टो एलेग्रे में जन्मी , वह जोस बर्नार्डो बैरेटो डी मेडेइरोस और इसाबेला माटोस डी मेडेइरोस की बेटी हैं। उन्होंने 1982 में पोर्टो एलेग्रे में पोंटिफिकल कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ रियो ग्रांडे डो सुल (पीयूसीआरएस) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और पोर्टो एलेग्रे के अखबार जीरो होरा और रियो डी जनेरियो के ओ ग्लोबो के लिए पत्रकार बन गईं। वह नौ महीने के लिए चिली चली गईं और उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू कर दिया। पोर्टो एलेग्रे वापस आकर उन्होंने एक पत्रकार के रूप में लिखना शुरू किया और अपनी साहित्यिक यात्रा भी जारी रखी। आईये पढ़ते है उन के द्वारा लिखी हुई कविता- आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं-
आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप
करते नहीं कोई यात्रा,
पढ़ते नहीं कोई किताब,
सुनते नहीं जीवन की ध्वनियां,
करते नहीं किसी की तारीफ़।
आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप
मार डालते हैं अपना स्वाभिमान
नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।
आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप
बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।
आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप
हीं महसूस करना चाहते आवेगों को,
और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को,
वे जिनसे नम होती हों आपकी आंखें,
और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।
आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप
नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को,
जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को,
अपने जीवन में कम से कम एक बार,
किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की
तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं।
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