जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है"- केदारनाथ अग्रवाल

1 अप्रैल 1911 को उत्तर-प्रदेश के बांदा जनपद के कमासिन गाँव में जन्मे केदारनाथ बचपन से ही काव्य प्रेमी थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने कविताएँ लिखने की शुरुआत की। युग की गंगा, नींद के बादल, लोक और अलोक, आग का आइना, पंख और पतवार, अपूर्वा, बोले बोल अनमोल, आत्म गंध आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। आईये पढ़ते हैं उनके द्वारा लिखी हुई कविता- "जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है"

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है

जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है

वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फ़ौलादी पंजे फैलाए नाग बना है

जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है

वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

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