मंगल पांडेय – एक नाम जिसने जगा दी थी स्वतंत्रता की चिंगारी

जब भी भारत की आजादी की बात होती है, तो जिन गिने-चुने नामों का उल्लेख सबसे पहले होता है, उनमें मंगल पांडेय शीर्ष पर होते हैं। वे सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि उस ज्वाला की पहली चिंगारी थे, जिसने वर्षों तक सुलगते भारत को आजादी की मशाल थमाई। 1857 की क्रांति के सूत्रधार मंगल पांडेय ने अंग्रेजों के खिलाफ जो बिगुल फूंका, उसने भारतीय स्वाधीनता संग्राम की नींव रख दी।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडेय था। साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले मंगल पांडेय का चयन मात्र 22 वर्ष की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में हुआ और वे बंगाल नेटिव इंफेंट्री की 34वीं बटालियन में शामिल किए गए। इस बटालियन में ब्राह्मणों की संख्या अधिक थी, जिससे उनका चयन संभव हुआ।
1857 की क्रांति और मंगल पांडेय की भूमिका
भारत में स्वतंत्रता की पहली चिंगारी 1857 के विद्रोह के रूप में भड़की, और इस आंदोलन का पहला स्वर मंगल पांडेय की आवाज में था। उन्होंने अपने ही अंग्रेजी अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह कर दिया, जो उस समय एक अत्यंत साहसिक कदम था।
विद्रोह की वजह थी चर्बी वाले कारतूस, जिन्हें सैनिकों को दांतों से खोलना पड़ता था। ऐसी खबरें थीं कि इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल हो रहा है, जो हिंदू और मुस्लिम, दोनों धर्मों के लिए आपत्तिजनक था। मंगल पांडेय ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से साफ मना कर दिया और अपने विरोध के स्वर को हथियार बना लिया।
विद्रोह, गिरफ्तारी और बलिदान
मंगल पांडेय का साहस ब्रिटिश हुकूमत को नागवार गुजरा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, उन्होंने गिरफ्तारी से पहले स्वयं को गोली मारने का प्रयास किया, लेकिन वे केवल घायल हुए।
8 अप्रैल 1857 को, निर्धारित तिथि से 10 दिन पहले, मंगल पांडेय को फांसी दे दी गई। अंग्रेजों को डर था कि यदि उन्हें समय पर फांसी दी गई, तो हालात और ज्यादा बिगड़ सकते हैं।
लेकिन उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई – 10 मई 1857 को मेरठ में बड़ा विद्रोह भड़क उठा, जिसका नेतृत्व कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने किया। यह विद्रोह भारत की स्वतंत्रता की लंबी लड़ाई का आरंभिक अध्याय बन गया।
मंगल पांडेय से जुड़े प्रमुख तथ्य
- मंगल पांडेय ने गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को गोली मारी थी।
- उन्होंने अपने साथियों से अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया।
- उनकी शहादत के सम्मान में भारत सरकार ने 1984 में डाक टिकट जारी किया।
- 22 साल की उम्र में सेना में शामिल हुए मंगल पांडेय ने मात्र 30 साल की उम्र में बलिदान दे दिया।
कविता के शब्दों में अमर बलिदान
प्रसिद्ध कवि नारायण सिंह ने मंगल पांडेय को इन शब्दों में श्रद्धांजलि दी थी:
"गोली के तुरत निशान भइल, जननी के भेंट परान भइल।
आजादी का बलिवेदी पर, मंगल पांडेय बलिदान भइल।"
इन पंक्तियों में छिपा है एक वीर सपूत का वह अदम्य साहस, जिसने मौत को गले लगाया, लेकिन पराधीनता को नहीं स्वीकारा।
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