पद्मा सचदेव की "भादों" दर्शाता वर्षा ऋतु की सुंदरता को

पद्मा सचदेव का जन्म 17 अप्रैल 1940, जम्मू के पुरमंडल गांव में हुआ था। पद्मा सचदेव डोगरी भाषा की पहली आधुनिक कवयित्री थीं जिन्होंने हिंदी में भी रचनाएँ कीं। उनकी कविताएँ डोगरी लोकगीतों की लय और प्रकृति की सुंदरता से प्रभावित थीं। उनका पहला कविता-संग्रह 'मेरी कविता मेरे गीत' 1969 में प्रकाशित हुआ, जिसे 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उनकी प्रमुख कविताएँ और गीत में भादों,सखि वे दिन कैसे थे!, काश, डोली और माँ की पहचान हैं- आईये पढ़ते हैं उनके द्वारा वर्षा ऋतु की सुंदरता और उसके साथ जुड़ी भावनाओं के चित्रण की रचना "भादों".
भादों ने गुस्से में आाकर जब खिड़कियाँ तोड़ीं
तब मुझे यों लगा जैसे कोई आया है ।
सावन की बौछारें भरी दुपहरी में चलकर आईं
मिट्टी की पूरी दीवार गीली हो गई
दीवार पर पूता मकील (स्फेद मिट्टी) रो उठा
बाहिर घड़ियाली (घड़ा रखने का ऊँचा स्थान) भी सीलन से भर उठी
बादल ने जब दीवार पर बनी लकीरें मिटा दीं
तब मुझे यों लगा जैसे कोई आया है ।
बादल ने बेशुमार रंग बदले
कहीं सात रंगों वाली पेंग कहीं घनी बदली
मेरा ये दालान कभी चाँदनी से भर उठा, कभी अंधेरे से
बाहर कच्ची रसोई की मिट्टी ज़रा ज़रा गिरती रही
कहीं कुँआरी आशायों की उन्मुकत हँसी बिखर गई
तब मुझे यों लगा जैसे कोई आया है ।
ऊपर के चोगान में जोर की बौछार पड़ी
मेरे घर के शाहतीरों का कोमल मन डर से काँप उठा
हवा के डर से कहीं आम की टहनियाँ श्रौर बेरी के दरख्त
जोर-जोर से आहें भरने लगे
निढाल और चूर हुई कूंजें एकाएक उड़ीं
तब मुझे यों लगा जैसे कोई आया है।
छोटे-छोटे पत्तों में ठंड उतर आई
मुए थर-थर काँपते हुए नीले हो गए
मानो माँ ने बाँह से पकड़कर जबरदस्ती नहलाया हो
और नहाने से सुन्दरता को और रूप चढ गया
बेलों से जब वृक्षों ने कलियाँ उधार माँगीं
तब मुझे यों लगा जैसे कोई आया है ।
वारिश के जोर-जोर से दौड़ने की आवाज के सिवा सब सूना है
कोई और आवाज सुनाई नहीं पड़ती मानो सृष्टि सो रही है
टप-टप-टप किसी सवार के घोड़े की ठापों की आवाज है क्या?
ओह ये तो ऊपर के दालान से कोई पड़छत्ती चू रही है
मेरी तरह अपने-आपसे जब उसने बातें की
तब मुझे यों लगा जैसे कोई आया है।
वारिश के बाद आसमान निखर आया
पक्षी पंक्तिवद्ध होकर उड़े।
ड्योढ़ी की दहलीज से जब एड़ियाँ उठाकर दूर देखती हूं
तो पहाड़ों के ऊपर से होकर दूर तक जाते बादल दिखाई देते हैं
धूप ने परदेसियों के लिए जब गलियाँ संवार दी
तब मुझे यों लगा जैसे कोई आया है।
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