कहानी: "बंद कमरा", का रहस्य

पुराने शहर के एक कोने में एक हवेली खड़ी थी — वीरान, धूल से ढकी, और लोगों के बीच बदनाम। कहा जाता था कि हवेली के ऊपरी माले का एक कमरा पिछले 25 सालों से बंद है, और जो भी उसे खोलने गया, कभी लौटकर नहीं आया।

राहुल, एक युवा पत्रकार, इन अफवाहों की सच्चाई जानने के लिए उस हवेली तक जा पहुँचा। उसके साथ सिर्फ एक टॉर्च, एक कैमरा और उसका जिज्ञासु मन था।

हवेली में घुसते ही सन्नाटा ऐसा था मानो दीवारें भी कोई राज़ छुपा रही हों। लकड़ी की सीढ़ियाँ चरमराईं, जैसे किसी ने कदमों की आहट सुनी हो।

राहुल ने धीरे-धीरे ऊपरी मंज़िल की ओर कदम बढ़ाए। और वहाँ था — वो दरवाज़ा, जिस पर मोटी ज़ंजीर जड़ी थी।

लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि ज़ंजीर टूटी हुई थी… और दरवाज़ा आधा खुला।

उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। वह अंदर घुसा।

कमरा धूल और जाले से भरा था, लेकिन बीचोंबीच एक पुरानी मेज़ पर कुछ रखा था — एक डायरी।

राहुल ने डायरी खोली — पहला ही पन्ना पढ़कर उसका चेहरा ज़र्द पड़ गया।

"जो यह पढ़ रहा है, शायद वही अगला शिकार होगा। इस कमरे में कोई नहीं मरता… बस खो जाता है।"

अचानक कमरे का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।

और तब से आज तक… राहुल भी नहीं मिला।

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