रवीन्द्र जैन: संगीतबद्ध रामायण को घर-घर पहुंचाने वाले गायक

रामानन्द सागर की रामायण को अपने संगीत की लय देकर रवीन्द्र जैन ने घर-घर में पहुंचा दिया था। लेकिन ये पहली बार नहीं था कि किसी धार्मिक सीरियल को मिला उनका संगीत लोगों के ज़हन में चस्पा हो गया हो। बी.आर. चोपड़ा की महाभारत का संगीत भी लोगों को न भूतो न भविष्यति की तरह स्मरण है।

रवीन्द्र जैन देख पाने में असमर्थ थे लेकिन भौतिकता ही तो सब-कुछ नहीं होती फिर कलाकार के लिए तो कतई नहीं। वो तो मन के भीतर की आंखों से जीता है। वहीं से सितारे बुनता है और अपनी कला के फ़लक में जड़ देता है। रवीन्द्र जैन ने सिर्फ़ संगीत ही नहीं दिया, गीत ही नहीं गाए बल्कि लिखे भी। इंटरनेट पर कई वीडियो हैं, उनके गीतों के पीछे के क़िस्सों को सुनाते। उनके लिखे गीतों की भी कहानी हुआ करती थी। 

पद्मश्री रवीन्द्र जैन पहले मंदिरों में जाकर भजन जाया करते थे। पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं - पिता ने जान लिया कि बच्चे में असाधारण प्रतिभा है इसलिए संगीत सीखने भेजा। रवीन्द्र जैन ने भी स्वयं का सोपान बनाया, उस पर चढ़े और कीर्ति के शिखर को छुआ। 

धार्मिक धारावाहिकों के संगीत का यश तो उनके हिस्से आया ही, उन्होंने राम तेरी गंगा मैली से लेकर विवाह फ़िल्म तक भी संगीत दिया। हर धुन एक से बढ़कर एक, हर एक गीत अव्वल। अलीगढ़ से निकलकर मुंबई तक का सफ़र तय किया और सुरों के समंदर से सीप निकालकर दिए।

2015 अक्टूबर में उनकी मृत्यु हो गई थी। लेकिन कलाकारों की मृत्यु कब होती है, उन्हें तो सदियों तक जीवित रखती है उनकी कला।  

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