"भीख"- एक लघु कथा

ठंडी सुबह थी। एक बूढ़ा भिखारी स्टेशन के बाहर बैठा था। फटे पुराने कपड़े, कांपता शरीर, सामने रखी कटोरी में दो-तीन सिक्के।
एक युवक उसके पास से गुज़रा। थोड़ी दूर जाकर लौटा। भिखारी की ओर झुका और बोला,
"काम करोगे?"
भिखारी की आँखों में चमक आई। उसने काँपते स्वर में कहा,
"हां बेटा, करूंगा।"
युवक ने मुस्कुराते हुए एक पर्ची दी —
"पास के ढाबे पर जाओ। मैंने मालिक से बात कर ली है। बर्तन धोने का काम है।"
भिखारी उठ खड़ा हुआ। सिक्के वहीं छोड़ दिए।
संदेश:
"भीख से बेहतर है सम्मानजनक मेहनत।"
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