लघु कथा: काजल की डायरी- “अपने बचपन का सपना।”

गाँव की पगडंडी पर चलते हुए काजल की नजर उस पुराने पेड़ पर पड़ी जहाँ वह बचपन में अपनी डायरी लेकर बैठती थी। अब शहर में नौकरी करते हुए सालों बीत गए थे, लेकिन आज अचानक छुट्टी लेकर वह अपने गाँव लौट आई थी।
पेड़ के पास बैठकर उसने बैग से वही पुरानी, फटी-सी डायरी निकाली। धूल से सनी हुई, पर उसमें लिखे शब्द अब भी ताजे थे।
"जब मैं बड़ी हो जाऊँगी, तो इस गाँव में एक लाइब्रेरी खोलूँगी, ताकि हर बच्चा किताबें पढ़ सके।"
उसने मुस्कुरा कर पन्ना पलटा। शहर की व्यस्तता में वह सपना कहीं खो गया था।
उसी समय पास से गुज़रता छोटा लड़का रुका और बोला, “दीदी, आप यहाँ बैठकर क्या पढ़ रही हो?”
काजल ने डायरी उसे दिखाते हुए कहा, “अपने बचपन का सपना।”
लड़के की आँखों में चमक थी। काजल ने उसी पल फैसला कर लिया—इस गाँव में अब सिर्फ यादें नहीं, किताबें भी रहेंगी।
संदेश:
अपने बचपन के सपनों को कभी न भूलें। समय और परिस्थितियाँ भले ही बदल जाएँ, लेकिन अगर दिल में जज़्बा हो तो कोई भी सपना फिर से जिया जा सकता है। कहानी यह प्रेरणा देती है कि जीवन की व्यस्तता में खोए हुए लक्ष्यों को भी फिर से पाया जा सकता है — खासकर जब वे दूसरों के भले के लिए हों।
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