लघु कथा: "सच्चा दान"- दान का मूल्य वस्तु में नहीं, भावना में होता है।

एक बार एक निर्धन बालक मंदिर के बाहर बैठा भीख मांग रहा था। उसके पास फटे कपड़े थे और चेहरा धूल से सना हुआ था।
एक धनी व्यक्ति मंदिर में पूजा करने आया। बाहर बैठे बालक को देखकर उसे दया आई। उसने अपनी जेब से 10 रुपये निकाले और बालक को दे दिए।
बालक ने मुस्कराते हुए पैसे लिए और बोला, “धन्यवाद साहब!”
उसी समय एक बुजुर्ग महिला मंदिर से बाहर निकली। उसने बालक को देखा, अपने बैग से एक रोटी निकाली और प्यार से उसे खाने को दी। साथ ही उसका सिर सहलाया।
बालक की आंखों में आंसू आ गए।
धनी व्यक्ति ने यह सब देखा और महिला से पूछा, “मैंने इसे पैसे दिए, आपने सिर्फ एक रोटी... फिर भी यह आपके लिए रो क्यों रहा है?”
महिला मुस्कराई और बोली,
"तुमने दान दिया, मैंने ममता दी। फर्क भाव का है, वस्तु का नहीं।"
संदेश
"सच्चा दान केवल वस्तु का नहीं होता, भाव का होता है। एक छोटी चीज भी अगर प्रेम और सहानुभूति से दी जाए, तो उसका असर गहरा होता है।"
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मदद केवल आर्थिक नहीं होती — एक प्रेमपूर्ण स्पर्श, एक स्नेहभरी मुस्कान या समय देना भी किसी के लिए अमूल्य हो सकता है।
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